मेनका, वरूण, रीता और संघमित्रा के विकल्प की तलाश में भाजपा
2024 में टिकट मिलने की नहीं उम्मीद
वरूण के बयानों को लेकर भाजपा नेतृत्व खासा नाराज
एक कबीना मंत्री हो सकते हैं पीलीभीत से उम्मीदवार
पार्टी विरोधी नीति से संघमित्रा का टिकट कटना तय
बेटे का सपा में शामिल होना भारी पड़ेगा रीता को
अरूण पाराशरी
लखनऊ। आगामी लोकसभा चुनाव में अभी समय है लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। हर चीज का आंकलन किया जा रहा है। एक ओर जहां अपनी प्रासंगिकता खो चुके नेताओं के विकल्प की तलाश शुरू कर दी गई है वहीं दूसरी ओर इन विकल्पों की तलाश में जातिगत क्षेत्रगत समीकरणों को भी साधने के प्रयास में पार्टी लगी हुई है।
इस बार कई बड़े चेहरों के टिकट कटने की संभावना है। उनके पीछे अपने-अपने कारण है। सुल्तानपुर की सांसद मेनका गांधी और उनके पुत्र पीलीभीत से सांसद वरूण गांधी, प्रयागराज की सांसद रीता बहुगुणा जोषी और बदायॅू की सांसद संघमित्रा मौर्य को लेकर पार्टी की अपनी चिंताएं है। पार्टी सूत्रों की मानें तो इन सभी के टिकट कट सकते है। इन क्षेत्रों के लिए जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश शुरू हो गई है।
मेनका गांधी ने सार्वजनिक रूप से कोई विवादित बयान भले ही न दिया हो लेकिन उनके पुत्र वरूण गांधी महंगाई और रोजगार के बहाने लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं कि भाजपा नेतृत्व असहज स्थिति में आ गया है। अग्निपथ और अग्निवीर योजना को लेकर ही वरूण गांधी ने पार्टी लाइन से इतर बयान दिये हैं। माना जा रहा है कि पार्टी पीलीभीत संसदीय सीट से वरूण गांधी की जगह किसी और को अपना उम्मीदवार बनाएगी। प्रदेश के एक कबीना मंत्री का नाम पीलीभीत सीट से चुनाव लड़ने के लिए लिया जा रहा है।
प्रयागराज सांसद रीता बहुगुणा जोशी पिछले एक विधानसभा चुनाव से विवादास्पद हो गई हैं। दरअसल रीता बहुगुणा जोशी अपने पुत्र मयंक जोशी को लखनऊ कैंट विधानसभा क्षेत्र से भाजपा का प्रत्याशी बनाना चाहती थी लेकिन पार्टी ने इस पर कोई विचार नहीं किया और लखनऊ कैंट से ब्रजेश पाठक को उम्मीदवार बनाया। इससे रीता बहुगुणा नाराज हुई। कहा तो यह भी जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में जब रीता बहुगुणा ने पार्टी के उम्मीदवारों का विरोध किया। चुनाव के दौरान ही उनके बेटे मयंक जोशी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। यहां की भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व किसी नए चेहरे की तलाश में है।
बदायूं की सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट कटना लगभग तय माना जा रहा है। संघमित्रा मौर्य के पिता स्वामी प्रसाद मौर्य विधानसभा चुनाव से पहले ही भाजपा छोड़ सपा में शामिल हो गए। संघमित्रा मौर्य ने पार्टी तो नहीं छोड़ी लेकिन चुनाव के दौरान वह सक्रिय नहीं रही, हालांकि संघमित्रा मौर्य अपने पिता के विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय रही और भाजपा प्रत्याशी का विरोध किया, हालांकि उनकी सक्रियता भी उनके पिता को जीत नहीं दिला पाई। बदायॅू सीट पर संघमित्रा मौर्य के विकल्प के तौर पर सिनोद शाक्य उर्फ दीपू भैया का नाम लिया जा रहा है। सिनोद षाक्य बदायूं की दातागंज सीट से दो बार विधायक रह चुके है। बदायूं सीट पर हुए विधान परिषद के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने सिनोद षाक्य को अपना प्रत्याशी बनाया था लेकिन सिनोद शाक्य ने भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में अपना नाम वापस ले लिया और भाजपा में शामिल हो गए। इनके अलावा पार्टी सांसदों की सक्रियता को लेकर भी आंकलन कर रही है और कुछ निष्क्रिय सांसद भी पार्टी के निशाने पर है जिनका भी टिकट कट सकता है