सीएम के फिजीशियन डॉ. बिष्ट ने हेल्थ सिस्टम पर ‘दागे’ सवाल
प्रशासनिक पदों पर विशेषज्ञ डॉक्टर क्यों ?
महानिदेशालय बना है नैक्ससबाजी का अड्डा !
आईएएस को बनाया जाए महकमे का मुखिया
अस्पतालों में दवाओं की कमी पर सब मौन
ब्रांडेड दवाएं लिखने पर आखिर पाबंदी क्यों
सेवानिवृत्त डॉ. जोशी ने किया खुला समर्थन
देहरादून। मुख्यमंत्री के फिजीशियन डॉ, एनएस बिष्ट ने सूबे के हेल्थ सिस्टम की पोल खोलकर रख दी है। उन्होंने सिस्टम को आइना दिखाते हुए तमाम सवाल दागे हैं। उनका कहना है कि विशेषज्ञ और अनुभवी चिकित्सों को प्रशासनिक पदों पर बैठाकर गंभीर मरीजों के साथ अन्याय हो रहा है। स्वास्थ्य महानिदेशालय नैक्ससबाजी का अड्डा बन गया है। लिहाजा महानिदेशक के पद पर डॉक्टर की बजाए आईएएस अफसर की तैनाती होनी चाहिए।
विगत दिवस एक कार्यक्रम में डॉ. बिष्ट का आक्रोश लफ्जों के रूप में सामने आया। हालात ये हो गए कि बोलते वक्त उनका माइक बंद करने की कोशिश भी की गई। लेकिन डॉ. बिष्ट रुके नहीं। डॉ. बिष्ट ने कहा कि महानिदेशालय की बैठकों में स्वास्थ्य सुधारों की बातों के बजाय डॉक्टरों पर छींटाकशी की जाती है। एक माननीय के इलाज और दवाओं को बाहर से आए लोगों के सामने अशिष्टतापूर्वक और प्रोटोकॉल तोड़कर बहस का मुद्दा बनाया जाता है। डॉ. बिष्ट ने कहा कि आपके पास अस्पतालों में रोगियों के इलाज की दवाएं नहीं तो डॉक्टरों पर किस नैतिकता से बाहर की दवाएं लिखने का लांछन लगाया जाता है। सरकारी अस्पतालों में प्राइवेट की फीस और जांचों का खर्च न उठा सकने वाले अनियंत्रित रोगो के गंभीर मरीज आते हैं उनको क्या आयरन की गोली पकड़ा कर घर भेज दिया जाए।
उन्होंने कहा कि सरकारी जिला अस्पताल में अनियंत्रित शुगर, ठच्, दमा, गठिया, मिर्गी, माइग्रेन, सर्वाइकल लोबैकपेन, थायराइड, बुखार, एलर्जी के मरीज ही ज्यादा आते हैं। यह लोग छोटे सरकारी अस्पतालों से पहले प्रोटोकॉल की दवा खाकर आते हैं या प्राइवेट अस्पताल की महंगी दवा का पर्चा लेकर आते हैं। इनको देने के लिए हमारे पास दूसरे या तीसरे प्रोटोकॉल की कोई दवा नहीं है। सरदर्द, माइग्रेन, थायराइड,गठिया,सर्वाइकल, न्यूरोपैथी, किडनी का रोग,लिवर का रोग, मानसिक रोग इत्यादि की तो एक गोली भी नहीं है।
इसके बाद डॉक्टर बिष्ट ने महानिदेशालय में होने वाली अनर्गल, अनुर्वर मीटिंग नैक्ससबाजी और सालों से जमे हुए निष्क्रिय डॉक्टरों का मुद्दा उठाया। डीजी ऑफिस की मीटिंग की एक आडियो वायरल हो रही है। इसमें बाहर से आए सीएमओ, कोरोना के नोडल ऑफिसर इत्यादि स्टाफ के सामने बिना शिष्टाचार और प्रोटोकॉल के बड़ी बेअदबी से डिस्कस किया गया। जब महानिदेशालय में इतनी घोर अनुशासनहीनता व्याप्त हो आईएएस को महानिदेशक बनाने की मांग जायज लगती है। पूर्व में हम इसका का विरोध करते आए हैं। मगर अब नहीं करेंगे क्योंकि महानिदेशालय अशिष्टता, फूहड़ता और कार्मिक भ्रष्टाचार का अड्डा बन कर रह गया है।
डॉ. बिष्ट ने कहा कि महानिदेशालय में विशेषज्ञ चिकित्सक जमे हुए हैं। इन्हें अस्पतालों में बैठकर ग्राउंड रियलिटी का सामना करना चाहिए। पर ये डॉक्टर समान की खरीद-फरोस्त और कर्मचारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के भ्रष्टाचार का कुचक्र बनाकर अड्डा डाले हुए हैं। महानिदेशालय द्वारा मरीजों की दवाएं और उपकरण मुहैया कराने के बजाय अर्नगल बैठके करना तथा स्वास्थ्य मंत्रालय और सचिवालय को गुमराह करते रहने की प्रवृत्ति से प्रतीत होता है कि महानिदेशालय को आईएएस ऑफिसर ही संभाल सकता है। डॉक्टर निदेशालय की जिम्मेदारी संभालने में सक्षम ही नहीं है।
इधर, हाल में ही सरकारी सेवा से रिटायर होने वाले उत्तराखंड प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष व वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. एसडी जोशी ने कहा कि डॉ. बिष्ट का कहना काफी हद तक ठीक है। एक तरफ हम जिला अस्पताल व मेडिकल कालेजों को नर्सरी हेल्थ केयर सिस्टम कहते हैं। पर वहां आप सामान्य दवाएं रखते हैं। आपके पास ज्यादातर वह मरीज आते हैं, जिनका मर्ज सामान्य दवाओं से नियंत्रित नहीं होता। उनके लिए नेक्स्ट जेनरेशन की दवाओं की आवश्यकता होती है। पर यह दवाएं अस्पताल में उपलब्ध नहीं होती। ये दवाएं यदि चिकित्सक बाहर से नहीं लिखेगा, तो क्या करेगा। सेकेंड व थर्ड जेनरेशन की दवा के लिए उसके पास कोई और विकल्प ही नहीं है। ऐसे में उसे कार्रवाई का डर दिखाना या स्पष्टीकरण लेना, कोई समाधान नहीं है।
उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों चिकित्सकों की वैसे ही कमी है। ऐसे में इन्हें आप महानिदेशालय आदि में तैनात कर देगें तो स्थिति और बुरी होती चली जाएगी। ऐसे लोग भी स्वास्थ्य महानिदेशालय में जमे हैं, जिन्होंने सरकारी खर्चे पर पीजी या पीजी डिप्लोमा किया है। नियमानुसार उन्हें पांच साल पेरीफेरी में काम करना चाहिए। पर वह तिकड़म भिड़ाकर स्वास्थ्य महानिदेशालय या अन्य जगह डटे हैं। अलबत्ता एक आईएएस को महानिदेशक बनाने को उन्होंने गलत बताया।