सत्ता और विपक्ष की लेटलतीफी से औपचारिक ही होगा सत्र !

विभागीय मंत्री होंगे न नेता प्रतिपक्ष
सीएम और संसदीय कार्य मंत्री पर ही भार
देहरादून। विधानसभा सत्र को लेकर न तो सत्ता पक्ष की ओर से कोई गंभीरता दिखाई गई और न ही विपक्ष की ओर से। नतीजा यह है कि इस सत्र में न तो विभागीय मंत्री ही होंगे न ही नेता प्रतिपक्ष। जाहिर है कि संवैधानिक बाध्यता के चलते यह सत्र महज एक औपचारिकता ही होगा।
उत्तराखंड की पांचवी निर्वाचित विधानसभा का पहला सत्र आज मंगलवार से शुरू हो रहा है। इस सत्र का आयोजन संवैधानिक बाध्यता है। अगर इस सत्र में लेखानुदान पारित नहीं कराया जाता तो एक अप्रैल से सरकार खजाने से एक पैसा भी नहीं ले सकती थी। ऐसे में सत्र का आयोजन जरूरी था।
लेकिन इस सत्र को लेकर सरकार और विपक्ष में से कोई भी गंभीर नहीं दिखा। सरकार ने आठ मंत्रियों को शपथ तो दिला दी। लेकिन विभागों का बंटवारा नहीं किया जा सका। ऐसे में मंत्रीगण सदन में तो जाएंगे पर बिना किसी विभाग के। ऐसे में विपक्ष के सवालों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को ही झेलना होगा।
इस मामले में विपक्षी दल कांग्रेस का रुख भी कुछ ऐसा ही है। 10 मार्च को नतीजा आने के बाद 20 दिन गुजर चुके हैं। लेकिन आपसी कलह से जूझ रही कांग्रेस अपने नेता का चयन ही नहीं कर सकी। चयन के नाम पर बैठक तो हुई पर इसका अधिकार कांग्रेस अध्यक्षा को देकर खानापूर्ति कर ली गई। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि सदन में विपक्ष किस तरह से और किसके नेतृत्व में सरकार की घेराबंदी कर सकेगा।