राजनीति

भाजपाई दिग्गजः एक ‘दिग्दर्शक’ तो अन्य ‘मार्गदर्शक’

 ‘पुष्कर’ को ‘खिलने’ को मिला खुला ‘सरोवर’

सीएम धामी के पास राष्ट्रीय फलक पर छाने का मौका

देहरादून। युवाओं को आगे बढ़ाने की बात करके भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी को राष्ट्रीय फलक पर छा जाने का मौका दिया है। अहम बात यह भी है कि भाजपा के सूबाई दिग्गजों में अधिकांश तो मार्गदर्शक की भूमिका में आते दिख रहे हैं तो एक दिग्गज दिग्दर्शक के तौर पर।

भाजपा देशभर में 25 साल आगे की रणनीति बनाकर काम कर रही है। इसी क्रम में उत्तराखंड में भी महज 45 के पुष्कर सिंह धामी को आठ माह पहले कमान सौंपी गई थी। यह इत्तिफाक ही रहा कि भाजपा ने मिथक तोड़ते हुए सत्ता में वापसी की। लेकिन धामी खुद चुनाव हार गए। गहन मंथन के बाद भाजपा ने अपने इसी युवा चेहरे पर फिर से दांव खेला है और तमाम कयासों और दिग्गजों की जोड़तोड़ को दरकिनार कर दिया।

भाजपा के मौजूदा हालात पर गौर किया जाए तो साफ दिखेगा कि भाजपा हाईकमान ने युवा धामी को भविष्य का नेता भी मान लिया है। यूं तो सूबाई भाजपा के तौर पर पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व सीएम डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व सीएम विजय बहुगुणा, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और केंद्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट भी हैं। पर भाजपा ने इनमें से किसी पर भी भरोसा करने की बजाय सबसे युवा धामी पर ही भरोसा जताया है।

उत्तराखंड में भाजपाई सियासी सीन इशारा कर रहा है कि विजय बहुगुणा ने अपने पुत्र सौरभ के लिए काबीना मंत्री का पद हासिल करके आगे खुद की सियासत से लगभग तौबा कर ली है। डॉ. निशंक की उम्र बढ़ रही है और अगले पांच साल में उत्तराखंड की सियासत में उनका कद एक मार्गदर्शक का ही हो सकता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत को टिकट न देकर भाजपा ने अपने इरादे साफ ही कर दिए हैं। अजय भट्ट को भी फिलहाल अगले पांच साल तक मौका शायद ही मिले। उनकी भी उम्र बढ़ रही है। ऐसे में इन्हें उत्तराखंड की राजनीति में मार्गदर्शक माना जाने लगा है।

अब बचे भगतदा। वे भले ही बतौर राज्यपाल सक्रिय राजनीति से खुले तौर पर दूर हों। पर उत्तराखंड की सियासत में उन्हीं की चल रही है। टिकटों के वितरण में भगतदा ने अपने खास शिष्यों को टिकट दिलवाया और धामी की सीएम की कुर्सी की राह भी आसान की। जाहिर है कि अंदरखानेभगतदा आज भी उत्तराखंड की सियासत में दिग्दर्शक की भूमिका में हैं।

ऐसे में सीएम धामी के पास उत्तराखंड के सियासी फलक पर चमकने का पूरा मौका है। अगर धामी के कदम न बहके तो कहीं से भी कोई सियासी चुनौती न होने की वजह से उन्हें उत्तराखंड का एकछत्र भावी नेता माना जाएगा। भाजपा ने उन्हें एक खुला आसमान दिया है, अब देखते हैं कि धामी कहां तक अपनी चमक बिखेरने में सफल होते हैं।

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