एक्सक्लुसिव

कहानीः आलीशान पर कथित ‘अभिशप्त’ बंगले की

आशियाना बनाने वाले चार ‘राजा’ वक्त से पहले हुए ‘बे-ताज’

एक राजा तो कुर्सी पर रहते हार गए चुनाव

दो ने तो इसमें झांकने की भी नहीं की कोशिश

नए राजा धामी ने नहीं माना अंधविश्वास को

देहरादून। अस्थायी राजधानी देहरादून का एक भव्य और कथित तौर पर अभिशप्त बंगला एक बार फिर सुर्खियों में है। वजह यह है कि तमाम अंधविश्वास को दरकिनार करके मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसी बंगले को अपना आशियाना बनाया है। यह अलग बात है कि इसके लिए लंबी कवायद हुई। आइए, आपको बताते हैं इस बंगले की कहानी।

2007 में कैंट रोड मुख्यमंत्री आवास का निर्माण पूरा हुआ था। यह इतना भव्य और खूबसूरत है कि बस देखते ही बनता है। जब तक यह बंगला तैयार हुआ उस वक्त तक एनडी सत्ता से बाहर हो चुके थे। लिहाजा वो इसमें रहने आ ही नहीं पाए। 2007 में भाजपा सरकार के मुखिया बने बीसी खंडूड़ी इस बंगले में सबसे पहले रहने आए। लगभग ढाई साल बाद उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद सीएम बने डॉ. रमेश पोखरियाल निंशक ने इसे अपना आशियाना बनाया। लेकिन उन्हें भी समय से पहले कुर्सी छोड़नी पड़ी। फिर सीएम बने खंडूड़ी भी इसी में रहे। लेकिन 2012 के आम चुनाव में उन्हें सीएम रहते हुए विधायक का चुनाव हारना पड़ा।

2012 में विजय बहुगुणा सीएम बने और इसी बंगले में आशियाना बनाया। वक्त ऐसा रहा कि उन्हें भी समय से पहले कुर्सी से हटना पड़ा। इसके बाद सीएम बने हरीश रावत ने तो इस बंगले में झांकना भी गंवारा नहीं किया। और तो और उन्होंने इसके कैंप कार्यालय का भी इस्तेमाल नहीं किया। हरीश रावत जब इस बंगले में नहीं आए तो इसे अभिशप्त कहा जाने लगा। कहा गया कि जो इस बंगले में रहेगा वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगा।

2017 में भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल करके सरकार बनाई। मुख्यमंत्री बने त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बंगले के मिथक पर यकीन नहीं किया और तमाम पूजा-अर्चना के बाद यही रहने लगे। वास्तुदोष खत्म करने के लिए इसमें गो-शाला भी बनाई गई। लेकिन समय पूरा होने से एक साल पहले उन्हें अचानक कुर्सी से हटना पड़ा। हालात ये रहे कि वे अपना चार सालाना जश्न भी पूरा नहीं पाए।

इसके बाद सीएम बने तीरथ सिंह रावत भी इसमें रहने नहीं आए। अलबत्ता उन्होंने इस बंगले के कैंप कार्यालय का इस्तेमाल जरूर किया। हालात ये बने कि तीरथ ने इस आलीशान बंगले को कोविड अस्पताल के रूप में तब्दील करने का फरमान जारी कर दिया। तीरथ की भी अल्प समय में ही विदाई हो गई। यह अलग बात है कि उनके अन्य आदेशों की तरह इस बंगले को कोविड अस्पताल बनाने के आदेश पर अमल नहीं हो सका।

अब तमाम कयासों को अंधविश्वास को दरकिनार करके नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसी बंगले को अपना आशियाना बनाया है। इसके बाद भी यह बंगला एक बार फिर से सुर्खियों में है। अलबत्ता बंगले में प्रवेश से पहले एक बार इसके कथित वास्तुदोषों को दूर किया गया है। खिड़कियां इधर से उधर की गईं हैं तो सौंदर्य के लिहाज से बनाए गए ढलान भरे गए हैं। इतना ही नहीं, एक सप्ताह से ज्यादा वक्त तक इस बंगले में पुजारियों ने तमाम पूजाएं भी पूरी कीं। अब यह अगले साल मार्च में आम चुनाव के नतीजों से ही साफ होगा कि बंगला वाकई में कतिथ अभिशप्त हैं या फिर इसके साथ जुड़ी सियासतदांओं की कहानी महज एक इत्तिफाक ही थीं।

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