उत्तराखंड

उत्तराखंड में आपदाओं का नया पैटर्न : उदय रिपोर्ट ने खोली खतरों की परतें

उत्तराखंड में भूगर्भीय एवं जलवायु जोखिमों में तेजी : एसडीसी फाउंडेशन की जुलाई 2025 उदय रिपोर्ट हिमालयी राज्य की नाजुक स्थिति को उजागर करती है

देहरादून।

देहरादून स्थित पर्यावरणीय एक्शन एवं एडवोकेसी समूह एसडीसी फाउंडेशन की उत्तराखंड डिज़ास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) की जुलाई 2025 संस्करण रिपोर्ट ने उत्तराखंड में अत्यधिक मौसमी घटनाओं, बुनियादी ढांचे पर खतरे और मानव जनित त्रासदियों में चिंताजनक वृद्धि को रेखांकित किया है। यह रिपोर्ट विश्वसनीय मीडिया स्रोतों पर आधारित है और राज्य की बढ़ती जलवायु परिवर्तन जनित एवं मानवीय कारणों से उत्पन्न आपदाओं की संवेदनशीलता को दर्शाती है।

जुलाई रिपोर्ट की सबसे महत्वपूर्ण खोज वाडिया इंस्टीट्यूट के अध्ययन से सामने आई, जिसके अनुसार उत्तराखंड में 426 ग्लेशियल झीलों में से 25 झीलें अत्यंत खतरनाक स्थिति में हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ये झीलें ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड का गंभीर खतरा पैदा कर सकती हैं, जैसा कि 2013 की केदारनाथ आपदा में हुआ था। वैज्ञानिकों ने इन क्षेत्रों में निरंतर निगरानी और अर्ली वार्निंग सिस्टम की सख्त जरूरत बताई है।

चमोली जिले में भारी बारिश, बादल फटने और भूस्खलन ने कहर बरपाया, जिससे 115 से अधिक सड़कें बंद हो गईं और घरों व कृषि भूमि को नुकसान पहुंचा। चमोली जिले के धुर्मा गांव के पास एक भीषण बादल फटने से घर तबाह हो गए और नदी का बहाव बदल गया, जिसके चलते कई लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना पड़ा। बद्रीनाथ हाईवे के भनेरपानी हिस्से में भूस्खलन और भू धसाव की स्थिति और गंभीर हो गई, जिससे चार धाम और हेमकुंड साहिब जाने वाले मार्ग पर संकट गहरा गया।

चिंता बढ़ाने वाला एक और पहलू यह है कि एक शोध अध्ययन ने उत्तराखंड को चरम जलवायु घटनाओं का हॉटस्पॉट करार दिया, जिसमें 2010 के बाद बादल फटने और फ्लैश फ्लड की घटनाओं में तेज वृद्धि दर्ज की गई है। एक अन्य चिंताजनक तथ्य यह है कि केदारनाथ के पास स्थित चोराबाड़ी ग्लेशियर हर साल 7 मीटर पीछे हट रहा है, जिससे भविष्य में झील फटने की घटनाओं का खतरा बढ़ रहा है।

मानवीय त्रासदियां भी जारी रहीं। पिथौरागढ़ में एक मैक्स वाहन हादसे में 8 लोगों की मौत हो गई, जबकि हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में भगदड़ में 8 लोग मारे गए और 28 घायल हुए, जिसमें भीड़ प्रबंधन और आपातकालीन तैयारी में बड़ी खामियों को उजागर किया।

रिपोर्ट ने तोताघाटी पर भी खतरे की घंटी बजाई है, जो ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग का एक अहम हिस्सा है। यहां चूना पत्थर की चट्टानों में गहरी दरारें उभर रही हैं, जो अगर चौड़ी होती हैं तो गढ़वाल का बड़ा हिस्सा महीनों तक देश से कट सकता है। इसके अलावा, चार धाम हाईवे परियोजना पर एक नए अध्ययन ने यह खुलासा किया कि असुरक्षित कटिंग के चलते 811 भूस्खलन हुए हैं, जिससे यात्रा मार्गों पर खतरा और बढ़ गया है।

एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने कहा, “जुलाई की उदय रिपोर्ट एक बार फिर संकेत देती है कि उत्तराखंड में आपदाएं अब अलग-थलग घटनाएं नहीं रहीं, बल्कि एक नियमित वास्तविकता बन गई हैं। जलवायु परिवर्तन की तेज़ी और मानवजनित कमजोरियों के चलते तत्काल कदम उठाने की जरूरत है ताकि आपदा तैयारी मजबूत हो, विकास नियंत्रित हो और नाजुक पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा हो।”

रिपोर्ट ने तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत बताई है, जिसमें अर्ली वार्निंग सिस्टम, ढलानों की स्थिरता, ग्लेशियर मॉनिटरिंग, भीड़ प्रबंधन प्रोटोकॉल और बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर सख्त अनुपालन शामिल हैं।

यह उदय का 34वां मासिक संस्करण है, जो अक्टूबर 2022 से लगातार जारी है, और उत्तराखंड में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर संवाद और जमीनी एक्शन को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखता है।

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