डिप्टी मेयर के ओहदे को ‘तरसते’ पार्षद
सूबे के आठ में से एक भी नगर निगम में नहीं कराया गया चुनाव
विकास समिति का पदेन अध्यक्ष होता है उप महापौर
देहरादून। नगर निगम का डिप्टी मेयर विकास समिति का पदेन अध्यक्ष होता है। इतना ही नहीं मेयर की गैरमौजूदगी में डिप्टी मेयर ही काम करता है। लेकिन उत्तराखंड नगर निगमों के पार्षद डिप्टी मेयर के ओहदे के लिए तरस रहे हैं। किसी भी निगम में डिप्टी मेयर का चुनाव नहीं कराया गया है।
सूचना अधिकार कार्यकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता नदीम उद्दीन ने इस बारे में राज्य निर्वाचन आयोग से सूचना मांगी तो इस तथ्य का खुलासा हुआ है। नदीम ने बताया कि नगर निगम अधिनियम की धारा 10 में निगम में एक उपमहापौर (डिप्टी मेयर) का प्रावधान है। इसे महापौर की स्थायी व अस्थायी अनुपस्थिति में उसके कार्य करने का अधिकार होता है। धारा 54 के अनुसार डिप्टी मेयर ही निगम की विकास समिति का पदेन सभापति होता है। उप महापौर को पार्षदों द्वारा पार्षदों में से चुना जाता है। इसके चुनाव पर आरक्षण नियम लागू होते हैं। सामान्य तौर पर इसका का कार्यकाल ढाई वर्ष या पार्षद के रूप में उसके कार्यकाल, जो भी पहले हो तक होता है। इस प्रकार निगम में में दो बार उपमहापौर का चुनाव होना चाहिये।
उत्तराखंड में वर्तमान में आठ नगर निगम देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, रूद्रपुर, काशीपुर, रूड़की. ऋषिकेश तथा कोटद्वार हैं। इनमें से केवल देहरादून निगम में ही 2003 और 2006 में डिप्टी मेयर का चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग ने कराया है। इसके बाद से किसी भी नगर निगम में डिप्टी मेयर का चुनाव नहीं करवाया गया है। इस तरह से देहरादून के पार्षद अब तक पांच बार डिप्टी मेयर बनने, काशीपुर रूद्रपुर, हल्द्वानी, हरिद्वार तथा रूड़की निगम में पार्षद तीन बार डिप्टी मेयर बनने के अधिकार से वंचित रहे। नगर निगम ऋषिकेश तथा कोटद्वार का गठन 2017 में और पहला चुनाव 2018 में हुआ। यहां भी डिप्टी मेयर नहीं चुना गया।
राज्य निर्वाचन आयोग ने नदीम को चुनाव न कराने का कोई कारण तो नहीं बताया है। लेकिन इतना जरूर कहा गया है कि इन पदों के लिए आरक्षण की अधिसूचना की जानकारी शहरी विकास विभाग से मांगी गई है।