दून की व्यवस्था पर बदनुमा दाग है ट्रेफिक पुलिस: राजीव

पार्किंग के बाद ही उठाएं नागरिकों के वाहन
स्वतंत्रता दिवस पर मनमानी पर भड़के कांग्रेस नेता
कभी भी किसी की गाड़ी उठा रही है ट्रेफिक पुलिस
देहरादून। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी राजीव महर्षि ने आजादी के अमृत महोत्सव वाले दिन देहरादून की ट्रेफिक पुलिस की मनमानी पर तीखे प्रहार किए हैं। उनका कहना है कि पहले पार्किंग स्थलों का विकास किया जाए, उसके बाद ही नागरिकों के वाहन उठाकर उनके जुर्माना वसूला जाए।

कांग्रेस नेता राजीव ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव पर स्मार्ट सिटी में शामिल देहरादून की यातायात व्यवस्था ने नागरिकों को बुरी तरह हताश, निराश और मायूस किया। यह जश्न में डूबे लोगों को हुई इस तरह की अनुभूति जैसा रहा, जैसे भांति भांति के स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ परोसे गए भोजन में मानो जानबूझ कर कंकर डाल दिया गया हो। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो बिना पार्किंग वाले शहर में यातायात पुलिस की स्मार्टनेस के सिवा कुछ नहीं है। आपकी गाड़ी कब लॉक हो जाए, कहीं भी और कभी भी नो पार्किंग के बहाने आपकी गाड़ी उठा ली जाए, कोई भरोसा नहीं है। आपको स्मार्ट सिटी में होने की कीमत कम से कम पांच सौ रुपए जुर्माने के साथ चुकानी पड़ सकती है।
प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी राजीव महर्षि ने ट्रैफिक पुलिस की कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में लेते हुए कहा है कि पहले तो स्पष्ट रूप से नो पार्किंग जोन घोषित किया जाना चाहिए। बाहर से आने वाले लोगों को देहरादून आने का दंड 500 रुपए जुर्माने के साथ न चुकाना पड़े, इसकी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए, साथ ही स्थानीय लोगों के हितों का ध्यान भी रखा जाना चाहिए।
उन्होंने दो टूक कहा कि देहरादून में ट्रैफिक पुलिस इस कदर निरंकुश हो गई है कि उस पर किसी का नियंत्रण नहीं है। किसी की भी गाड़ी, कभी भी, कहीं से भी उठाई जा सकती है। आपकी आंखों के सामने यह हो सकता है लेकिन आम लोगों की बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है। घर से बाहर निकलना हो तो पांच सौ रुपए ट्रैफिक पुलिस के लिए लेकर चलना अनिवार्यता हो गया है।
उन्होंने कहा कि खुद मुख्यमंत्री को इस अव्यवस्था का संज्ञान लेकर ट्रैफिक पुलिस के पेंच कसने होंगे, अन्यथा उनके सुशासन के नारे पर हमेशा सवालिया निशान लगा रहेगा। उन्होंने कहा कि निरंकुश ट्रैफिक पुलिस देहरादून के प्रशासन पर बदनुमा दाग है और सरकार को इस दिशा में सबसे पहले सोचने की जरूरत है। केवल नारों से काम नहीं चलेगा। जमीन पर काम करना होगा और उसके लिए शहर में पर्याप्त पार्किंग की व्यवस्था करनी होगी, उसके बाद ही ट्रैफिक पुलिस को लोगों पर हाथ डालने की अनुमति दी जाए।