खुलासा

रिवर्स पलायन पर आयोग ने डराया

प्रवासियों के लौटने से घटेगी राज्य की जीडीपीः पलायन आयोग

कोरोना संकट में उत्तराखंड में लौटे हैं 68 हजार प्रवासी

पलायन आयोग के इस तर्क से सहमत नहीं हैं जानकार

न्यूज वेट ब्यूरो

देहरादून। एक तरफ सरकार रिवर्स पलायन को लेकर काम रही है तो दूसरी ओर राज्य पलायन आयोग ने महज 68 हजार प्रवासियों के उत्तराखंड में लौटने से ही जीडीपी घटने की आशंका जता दी है। जाहिर है कि इस आशंका का सरकार के प्रयासों पर बुरा असर होगा। यह अलग बात है कि पलायन क्षेत्र में काम करने वाले जानकार लोग आयोग की इस आशंका से जरा भी सहमत नहीं है।

कोरोना संकट के इस दौर में विभिन्न राज्यों में काम करने वाले लगभग 68 हजार लोग पहाड़ पर वापस आए हैं। इनमें राज्य के मैदानी इलाकों में काम करने वाले लोग भी शामिल है। लगभग पांच फीसदी लोग विदेश से भी वापस आए हैं। पिछले दिनों राज्य पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी से सरकार को एक रिपोर्ट दी है। इसमें कहा गया है कि सूबे के 10 पर्वतीय जिलों में 60 हजार लोग (सरकारी आंकड़ा 68 हजार के लगभग) अपने गांव लौटे हैं। ये लोग अपनी कमाई का एक हिस्सा अपने परिजनों के लिए भेजते हैं। पहाड़ की 30 फीसदी आर्थिकी मनीआर्डर पर टिकी है। ऐसे में जब बाहर से पैसा नहीं आएगा तो जीपीडी घट जाएगी। आयोग की इस रिपोर्ट से सरकार की रिवर्स पलायन की कोशिशें भी कमजोर हो सकती है। हालांकि आयोग ने इन लोगों के लिए पहाड़ में ही रोजगार इंतजामात करने की सरकार को सलाह दी है।

इधर, आयोग की इस आशंका से पलायन रोकेने और रिवर्स पलायन के क्षेत्र में काम करने वाले सहमत नहीं है। पलायन एक चिंतन संस्था के संयोजक रतन सिंह असवाल कहते हैं कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्र की आबादी लगभग 44 लाख है। ऐसे में 70 हजार और लोगों के आने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। वैसे भी पहाड़ पर बाहर से आने वाला अधिकांश पैसा सुरक्षा सेवा में लगे लोगों के परिवारों के पास आता है। ये लोग तो वापस आए नहीं हैं। फिर जीडीपी कैसे गिर जाएगी। अन्य काम करने वाले लोग कितना पैसा यहां भेजते होंगे, इसे समझने के लिए किसी अर्थशास्त्री की जरूरत नहीं है। इन प्रवासियों के लौटने के बाद खाली पड़ी जमीनों पर फिर से फसलें लहलहा सकती हैं। लोगों को औद्यानिकी के साथ ही ग्रामीण पर्यटन, साहसिक पर्य़टन, एग्री पर्यटन से भी जोड़ा जा सकता है। दुग्ध उत्पादन, पशुपालन, मछलीपालन जैसे अन्य कामों में भी तेजी आ सकती है। ये क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता में होने चाहिए। इसके लिए कार्ययोजना कार्यस्थल पर जाकर ही बनाई जानी चाहिए।

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