एक्सक्लुसिव

हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ की तरह मोबाइल गाथा भी अनंत

अनंत गुण विभूषित मोबाइल का सिम है आत्मा

वीरेंद्र सिंह

आर्यावर्त, रेवाखंड में मोबाइल महिमा अखंड है। अनंत गुण विभूषित मोबाइल का सिम आत्मा है। इसके स्पंदन से ही हमारा जीवन चलता है। मोबाइल के खराब हो जाने यानि शरीर के बीमार हो जाने पर हमारी गतिविधियां रुक जाती हैं। इसे मुट्ठी में रखकर दुनिया को मुट्ठी में कर लेने का एहसास करते हैं।

‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ की तरह मोबाइल की गाथा भी अनंत है। गोद में शिशु जब रोता है, उसे मोबाइल देकर चुप करा दिया जाता है। उसके मर्म को महसूस करने वाली ममतामयी मां समझ जाती है कि इसे मोबाइल चाहिए। उसे यह संस्कार भी मां से ही मिला है। वह बोल नहीं पाता है, पर मोबाइल चलाता है। आधुनिक समाज के इस उत्कर्ष पर हम आह्लादित होते हैं।

करोना काल में जब स्कूल-कॉलेज बंद हुए, तो ऑनलाइन क्लासेज शुरू हो गए। यहीं से किशोरों के लिए मोबाइल अपरिहार्य बुराई बन गए। बच्चा चैटिंग में बिजी है। घरवाले समझ रहे हैं पढ़ाई कर रहा है। खैर, वह दौर भी गुज़र गया। पर मोबाइल की लत पनप गई। प्यार को परवान चढ़ाने में ब्रह्मास्त्र बन गया मोबाइल। पहले प्रेमी-प्रेमिका का खत पहुंचने में महीनों लग जाते थे। पहुंच भी जाय तो जवाब का लंबा इंतजार होता था। अब व्हाट्सएप्प, ट्वीटर, इंस्टाग्राम जैसे तमाम डाकिए इंस्टेंट मेसेज पास आन करने को तत्पर हैं। आधुनिक तकनीक ने हमारे दिल की दूरियां मिटा दी।

घर के लिविंग एरिया में परिवार के सभी लोग बैठे हैं। दादा- दादी, पापा-मम्मी, भैया-भाभी, बहन-भाई सबके हाथ में मोबाइल। सन्नाटा पसर गया संबंधों में। सुख-साझा नहीं होते हैं। संवादहीनता से घुटन,टूटन और संत्रास में गुजरता जीवन यांत्रिक हो गया। रिश्तों का रंग फीका पड़ गया। संवेदना की धार भोथरा गई। अपनेपन की तरलता शुष्क हो गई। एक बानगी देखिए।

मंदिर का दृश्य : पूजा की सामग्री सजी है। पुजारी धूप, दीप, नैवेद्य से  भगवानजी का पूजन कर रहे होते हैं। एक हाथ में आरती की थाल और दूसरे हाथ से मंदिर में लगी घन्टी को बजाने का प्रयास। उसका हाथ उस घन्टी तक छू भी नहीं पाया था कि अचानक पुजारी की जेब से मोबाइल की घंटी की मधुर आवाजें आने लगी। पुजारी ने आरती बीच में ही रोक दी और लगे बतियाने मोबाइल फोन पर। 

अस्पताल का दृश्यः   अस्पताल के गहन चिकित्सा यूनिट यानी कि आई.सी. यू. में मरीज मृत्यु से लड़ रहा है। इतनी अधिक खामोशी कि, सुई गिरने तक की आवाज भी सुनाई दे सकती है। किंतु, तभी एक डाक्टर के कोट की जेब से मोबाइल की जोरदार घंटी बजने लगी। घंटी की आवाज जोर से झटका मारने जैसी थी। जिसे सुनकर बेचारा पलंग पर लेटा हुआ ‘वो’ मरीज डरके पलंग पर उठकर बैठ जाता है। हालांकि, ऐसे मौके पर मोबाइल को साइलेंट मोड पर रखने की हिदायत दी जाती है।

श्मशान का दृश्यः क्या होगा जब श्रद्धाँजलि देने के लिए शोकसभा चल रही हो, सब अपना-अपना मुँह लटकाएं बैठे हुए हों। एक व्यक्ति रुआँसू होते हुए बोलने की कोशिश कर रहा हो कि तभी उसके मोबाइल फोन की घंटी घनघनाने लगे। वो वहाँ भीड़ से थोड़ी दूर जाकर हंसकर बतियाने लगे। 

महिलाओं की बातचीत-लगभग 75 प्रतिशत बातें प्रायः गृहणियों द्वारा अपनी ससुराल पक्ष की महिलाओं की शिकायतें .. उनकी निंदाओं उनकी चुगलियों से भरी होती है। शेष 25 प्रतिशत बाते ही काम की अथवा सकारात्मक होती है। बेटी द्वारा अपनी ससुराल से सर्वाधिक बातें अपनी माँ से की जाती है। उन बातों का केन्द्र बिन्दु सर्वप्रथम ‘सास’ बनती है। तद्पश्चात, ननद, जैठानी और देवरानी इत्यादि। जब कभी भी बहू का फोन उसके मायके से (माँ का) आता है। हमेशा ही सास को यह खटका बना रहता है कि जरुर बहू की माँ अपनी बेटी को मेरे प्रति भड़का रही होगी? या फिर मेरी निंदा कर रही होगी? परिवार के सदस्यों के अलावा महिलाएं क्या खाना बना राशि हैं, साड़ी, अचार, सीरियल,मुहल्ले की घटनाओं, भ्रमण स्थलों की बात विस्तार से करती हैं।

स्याह पक्ष: यह सच है मोबाइल आज की ज़रूरत है। तमाम सहूलियतें हैं इसमें। पर इसका एडिक्शन एक गंभीर बीमारी बनती जा रही है। खास तौर पर पेरेंट्स परेशान हैं कि बच्चों को मोबाइल की लत से कैसे निजात दिलाई जाय। कॉउंसलिंग क्लासेस शुरू हो गए हैं। पृथ्वीलोक में ‘नोमोफोबिया’ (यानी कि नो मोबाइल फोबिया नामक एक फोबिया पैदा हो गया है। इससे पीड़ित व्यक्ति सोते समय भी अपना मोबाइल अपने पास रखता है। प्रायः 14 से 25 वर्ष की आयु के नवयुवक इससे सर्वाधिक पीड़ित होते है। भारतवर्ष में बेंगलूरु में देश का पहला ‘इंटरनेट डी-एडिक्शन क्लीनिक’ खोला गया है। इस नोमोफोबिया से छुटकारा दिलाने के लिए। रेलवे ट्रैक, नदी के किनारे, छत पर बात करते हुए या सेल्फी लेते हुए कितने लोग जान गवां बैठते हैं। रेल की पटरी पर, सड़क पर बात करते हुए हमसे बिछड़ जाय, हैंडल विद केअर।

इति मोबाइल कथा।

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