ट्रब्युनल ने हिंदी में स्वीकारी पहली दावा याचिका
सभी न्यायिक कार्यों में हिंदी के प्रयोग का रास्ता खुला
आरटीआई कार्यकता नदीम की पहल
काशीपुर। उत्तराखंड गठन के समय से ही हिंदी उत्तराखंड की राजभाषा है। उच्च न्यायालय के अतिरिक्त सभी प्राधिकारियों व न्यायालयों में हिंदी का सभी कार्य में प्रयोग किये जाने का प्रावधान है। लेकिन 2001 में गठित उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण में अभी तक हिंदी का प्रयोग न्यायिक कार्यों में नहीं हो रहा था। माकाक्स अध्यक्ष तथा सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट की पहल व उनके अनुरोध पर लोक सेवा अधिकरण में न्यायिक कार्यों सहित सभी कार्यों में हिन्दी प्रयोग का रास्ता खुल गया है। नैनीताल पीठ में उनके द्वारा हिन्दी में दायर पहली दावा याचिका सुनवाई को स्वीकार भी कर ली गई है।
विगत 25 वर्षों से अधिक से कानूनी क्षेत्र में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने को संघर्षरत नदीम उद्दीन एडवोकेट ने लोक सेवा अधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस यू.सी.ध्यानी से अधिकरण के सभी कार्यों में हिन्दी के प्रयोग करवाने का अनुरोध किया था। नदीम के अनुरोध के उपरान्त उत्तराखंड सरकार की ओर से विभिन्न केसों में दाखिल किये गये काउन्टर एफिडेविट/लिखित कथन हिन्दी में फाइल किए गए तथा अधिकरण द्वारा स्वीकार किये गये।
31 अगस्त 2021 को नदीम ने पुलिस कांस्टेबिल कपिल कुमार की दावा याचिका (क्लेम पिटीशन) हिंदी में नैनीताल पीठ में दाखिल की। अधिकरण अध्यक्ष न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी तथा उपाध्यक्ष राजीव गुप्ता की पीठ ने नदीम और सरकारी वकील को सुनने के उपरान्त इसे सुनवाई हेतु स्वीकार कर लिया है।
नदीम ने बताया कि अधिकरण द्वारा हिन्दी में दावा याचिका (क्लेम पिटीशन), काउन्टर एफिडेविट तथा रिज्वांइडर एफिडेविट स्वीकार करने से अधिकरण में सभी कार्यों में हिन्दी प्रयोग का रास्ता खुल गया।