ब्यूरोक्रेसी

नतीजा तय करेगा व्यवस्थापिका और कार्यपालिका की “सीमाएं”

रेखा आर्य और सचिन कुर्वे के बीच ‘जंग’ जारी

मेरे अधिकार क्षेत्र का किया उल्लघंनःमंत्री

नियमानुसार ही किए गए तबादलेः सचिव

देहरादून। उत्तराखंड में मंत्रियों और सचिवों के बीच विवाद अब आम सी बात हो गई है। ताजा मामला काबीना मंत्री रेखा आर्य और सचिव सचिन कुर्वे के बीच जंग का है। ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने ही होंगे। अब यह साफ हो गया है कि इस जंग का नतीजा ही तय करेगा कि कार्य़पालिका और व्यवस्थापिका की क्या सीमाएं हैं।

इस राज्य में मंत्रियों और विभागीय सचिवों के बीच के विवाद आए दिन सुर्खियों में रहते हैं। इन्हीं सबके बीच काबीना मंत्री सतपाल महाराज समेत अन्य मंत्री यह मांग कर रहे हैं कि सचिवों की एसीआर लिखने का अधिकार उन्हें दिया जाए। सरकार इस मसले पर कोई फैसला ले भी नहीं पाई थी कि एक और विवाद सुर्खियों में हैं।

खाद्य सचिव सचिन कुर्वे ने जिला पूर्ति अधिकारियों के तबादले कर दिए। इसमें एक अफसर विभागीय मंत्री रेखा आर्य का खासा नजदीकी बताया जा रहा है। फिर क्या था मंत्री भड़क उठी और सचिव को एक करारा खत लिखकर तबादले निरस्त करने को कहा। मंत्री ने इस प्रकरण की सूचना मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री को देते हुए कहा कि सचिव ने अपने अधिकारों का गलत उपयोग किया है। उन्हें विश्वास में लिया ही नहीं गया। लिहाजा सचिव के खिलाफ एक्शन लिया जाए।

इधर, विभागीय सचिव सचिन कुर्वे भी अपनी बात अगिड हैं। मंत्री के खत के जवाब में उन्होंने लिखा है कि सभी तबादले नियमानुसार ही किए गए हैं। इस प्रकरण में मंत्री की किसी भी तरह की अनदेखी नहीं की गई है। उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर ही ये तमाम तबादले किए हैं।

अब गेंद एक बार फिर से सरकार के पाले में हैं। सरकार को अब तय करना ही होगा कि व्यवस्थापिका और कार्यपालिका की सीमाएं क्या हैं। इस मामले में यह भी देखना होगा कि क्या मंत्री किसी वजह से वायस्ड हैं या फिर सचिव ने वास्तव में गलत काम किया है। अगर सरकार ने इस मसले की तह तक जाकर सही हल खोज लिया तो इस समस्या का स्थायी हल निकाला जा सकता है। वरना मंत्रियों और सचिवों के विवाद यूं ही सुर्खियों में आते रहेंगे और इसका कुप्रभाव सरकार की छवि पर भी पड़ेगा।

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