ब्यूरोक्रेसी

तो क्या मंहगा पड़ा पुरानी टीम पर ‘भरोसा’ !

‘सौम्य’ तीरथ ने ब्यूरोक्रेसी में नहीं किया बड़ा फेरबदल

शपथ लेते ही पलटे थे त्रिवेंद्र के कई फैसले

गैरसैंण कमिश्नरी का आदेश भी नहीं रद

विकास प्राधिकरण भी पूरी तरह नहीं खत्म

देवस्थानम् बोर्ड पर भी नहीं हुआ पुनर्विचार

देहरादून। कार्य़वाहक सीएम तीरथ सिंह रावत ने ब्यूरोक्रेसी में बड़ा फेरबदल करने की बजाय त्रिवेंद्र की टीम पर ही भरोसा किया। लेकिन ब्यूरोक्रेसी का आलम यह रहा कि तीरथ की कई घोषणाओं को अमलीजामा नहीं पहनाया गया। कथित संवैधानिक संकट अपनी जगह है पर ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या सौम्य स्वभाव वाले तीरथ का पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की टीम पर ही पूरा भरोसा करना क्या उन्हें किसी हद तक मंहगा पड़ा।

शपथ लेने के तत्काल बाद तीरथ सिंह ने त्रिवेंद्र सरकार के कई फैसलों को पलटकर जमकर वाहवाही लूटी। इसके साथ ही तीरथ ने ब्यूरोक्रेसी में भारी फेरबदल की बजाय पुरानी टीम पर ही भरोसा किया। सीएम ने केवल अपने सचिवालय में ही कुछ बदलाव किए। बाकी जिलों और शासन स्तर पर बड़े फेरबदल से परहेज किया। अफसर अपने पुराने अंदाज में ही काम करते रहे। शायद यही वजह रही कि तीरथ के कई अहम फैसलों पर अमल ही किया गया। त्रिवेंद्र सरकार के समय में बने देवस्थानम् बोर्ड पर तीरथ ने नए सिरे से विचार की बात की थी। इसकी खासी सराहना भी हुई। लेकिन सीएम पद से विदाई तक यह बोर्ड पहले की तरह ही काम करता रहा।

तीरथ ने गैरसैंण को कमिश्नरी बनाए जाने के आदेश को भी निरस्त करने की घोषणा की। इस पर भी कोई औपचारिक आदेश आज तक जारी नहीं किया गया। तीरथ ने जिला विकास प्राधिकरणों को भ्रष्टाचार का अड्डा बताते हुए इन्हें खत्म करने की बात करते हुए एक कमेटी बना दी। इस कमेटी ने तीरथ के एक सौ दिन से कुछ ज्यादा के कार्यकाल में कुछ नहीं किया और ये प्राधिकरण अधिकार में कुछ कटौती के साथ आज भी बदस्तूर काम कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल तो लाजिमी बनता है कि क्यी तीरथ का पुरानी सरकार की टीम के साथ ही काम करना मंहगा साबित नहीं हुआ।

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