एक्सक्लुसिव

63 लाख ‘दान’ देने वाले भामाशाह भी “गरीब”

सरकारी अफसर ने भी मान लिया खर्च के लिए पैसा न होने का (कु) तर्क

उत्तराखंड के निजी स्कूलों का फीस वसूली का मामला

लॉकडाउन में अभिभावक परेशान, सरकार ने साधा मौन

न्यूज वेट ब्यूरो

देहरादून। उत्तराखंड के निजी स्कूल पहले तो 63 लाख का दान देकर भामाशाह के रोल में दिखे। अब खुद को गरीब बताकर अभिभावकों से एडवांस फीस की वसूली में लगे हैं। अहम बात यह भी है कि विभागीय सचिव ने इन स्कूल प्रबंधन के इस (कु) तर्क को बगैर बैलेंस शीट की जांच कराए ही मान लिया कि स्टाफ के वेतन और अऩ्य खर्च के लिए उनके पास पैसे ही नहीं हैं। अब ये निजी स्कूल सचिव के आदेश की आड़ में अभिभावकों पर फीस के लिए दबाव बना रहे हैं। लॉकडाउन में अभिभावक हैं परेशान और सरकार ने साधा रखा है मौन।

उत्तराखंड के निजी स्कूलों की दबंगई इस समय सोशल मीडिया में छाई हुई है। इन स्कूलों के प्रबंधन के संगठन ने सरकार को पिछले दिनों 63 लाख रुपये का चंदा मुख्यमंत्री राहत कोष में दिया है। इसके बाद ये स्कूल अचानक गरीब हो गए। दरअसल, ये स्कूल सभी अभिभावकों पर तीन माह की फीस जमा करने का दबाव बना रहे थे। मामला संज्ञान में आने पर विभागीय सचिव ने लॉंकडाउन का हवाला देते हुए फीस वसूली पर रोक लगा दी। इस पर 63 लाख चंदा देने वालों ने अपना खेल शुरू किया। अचानक ही विभागीय सचिव ने एक नया आदेश करके कहा कि स्कुल एक माह की फीस ले सकते हैं।

हालात ये रहे कि इसी आदेश में लिखा गया है कि चूंकि स्कूल प्रबंधन का कहना है कि स्टाफ का वेतन व अन्य खर्च पूरे करने के लिए पैसों की जरूरत है। अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या सचिव ने अपना आदेश जारी करने से पहले इस स्कूलों की बैलेंस शीट का परीक्षण कराकर सत्यता जानने की कोशिश की। शायद अफसर पर 63 लाख के चंदे के दबाव में थे। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब स्कूल प्रबंधन की माली हालत खराब थी तो भामाशाह बनकर एक बड़ी राशि दान करने की सलाह किसने दी। चंदा दिया सरकार को और दबाव बनाया जा रहा लॉकडाउन झेल रहे अभिभावकों पर।

एक माह की फीस का विकल्प ही नहीं

सरकार ने भले ही एक माह की ही फीस लेने की अनुमति दी है। लेकिन कई स्कूलों की ऑनलाइन फीस एक तीन माह की ली जा रही है। एक अभिभावक ने बताया कि उसने कई बार कोशिश की। लेकिन एक माह का विकल्प ही नहीं आया। तीन माह का ऑप्शन लेते ही फीस जमा हो गई।

 

संबंधित खबर

निजी स्कूलों पर इतनी मेहरबानी क्यों सरकार ?

 

 

 

 

 

Back to top button