उत्तराखंड

उत्तराखंड में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति और उसका राजनीतिक प्रभाव

उत्तराखंड में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति और उसका राजनीतिक प्रभाव

रतन सिंह असवाल

देहरादून। उत्तराखंड में जिसे लंबे समय से देवभूमि और वीरभूमि के रूप में जाना जाता है, अपनी सादगी, ईमानदारी, और सैन्य शौर्य के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन आज, इस हिमालयी राज्य की राजनीति में आपराधिक प्रवृत्ति का बढ़ता दखल इसकी पारंपरिक छवि को धूमिल कर रहा है।

पिछले एक दशक में, राजनीतिक प्रतिनिधियों और उनके करीबियों पर हत्या, दुराचार, भूमि कब्ज़ा, और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। चुनावी राजनीति में पैसा और बाहुबल का वर्चस्व बढ़ने से साफ-सुथरी छवि वाले नेता पीछे छूट रहे हैं, जबकि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग दल-बदल और सत्ता के प्रभाव से सुरक्षित होकर राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा बनते जा रहे हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव दृष्टिकोण से उत्तराखंड की पहचान ईमानदारी और अनुशासन से जुड़ी है। गांवों से लेकर सैन्य परंपरा तक, इस क्षेत्र ने देश को समर्पित और वीर नागरिक दिए हैं। जब राजनीतिक चेहरे अपराध में लिप्त होते हैं, तो इसका असर पूरे समाज पर पड़ता है। इससे लोकतंत्र पर जनता का भरोसा कम होता है और राजनीति को अपराध और भ्रष्टाचार का पर्याय माना जाने लगता है।

पर्यटन के नजरिए से वैश्विक स्तर पर राज्य की छवि पर असर पढ़ता है । उत्तराखंड को भारत और दुनिया भर में एक आध्यात्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में विशेष पहचान मिली है। लेकिन जब यह छवि अपराध और भ्रष्टाचार से धूमिल होती है, तो इसका सीधा असर पर्यटन, निवेश और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा पर पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश जाता है कि यह नया राज्य भी पुरानी राजनीतिक बीमारियों से ग्रस्त है, जिससे इसकी विश्वसनीयता और सम्मान दोनों घटते हैं।

समस्या की पड़ताल पर कई कारण सामने आते हैं लेकिन प्रथमदृष्टया कुछ विन्दुओं पर कलम अटक जाती है । जैसे, राजनीति में अपराधियों का संरक्षण, राजनेता अक्सर अपने स्वार्थ के लिए आपराधिक तत्वों का समर्थन करते हैं।

दल-बदल की संस्कृति, सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल अपराधियों को शामिल करने में संकोच नहीं करते।

चुनावी प्रक्रिया में पैसा और जातिवाद, चुनाव जीतने के लिए पैसे और जातिगत समीकरणों का अत्यधिक उपयोग होता है, जिससे योग्य उम्मीदवार पीछे रह जाते हैं।

युवा कार्यकर्ताओं में नैतिक शिक्षा की कमी, नई पीढ़ी के कार्यकर्ताओं में सेवा-भावना की जगह व्यक्तिगत लाभ की प्रवृत्ति हावी हो रही है।

न्यायिक प्रक्रिया में देरी, स्थानीय स्तर पर अपराध सिद्ध होने में लगने वाला लंबा समय अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण देता है।

हमे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि, उत्तराखंड की आत्मा उसकी सादगी और वीरता में है। अगर राजनीति में अपराध और भ्रष्टाचार हावी हो गया, तो यह न केवल लोकतंत्र की नींव को कमजोर करेगा, बल्कि देवभूमि की वैश्विक पहचान को भी मिटा देगा।

अब सबसे बड़ी जरूरत यह है कि राजनीतिक नेतृत्व स्वयं को ईमानदारी और शुचिता के दायरे में बांधे। हमें भविष्य की पीढ़ियों को यह विश्वास दिलाना होगा कि उत्तराखंड केवल आस्था और पर्यटन की भूमि नहीं, बल्कि एक सच्चे लोकतांत्रिक राज्य का उदाहरण भी बनेगा।

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