उत्तराखंड

हिमालय: पर्यटन, उद्योग और पशुपालन से रुकेगा पलायन – रतन सिंह असवाल

हिमालय: पर्यटन, उद्योग और पशुपालन से रुकेगा पलायन –
रतन सिंह असवाल

ऊँचे शिखर, गहरी घाटियाँ और देशभक्त लोग हिमालयी राज्यों की पहचान हैं। यह क्षेत्र सामरिक रूप से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत समृद्ध है। पर आज इन बुलंदियों पर ‘पलायन’ की खामोशी पसर रही है, जो हमारी अस्मिता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चेतावनी है।

समस्या गंभीर है, लेकिन इसका समाधान असंभव नहीं है। समाधान की कुंजी तीन स्तंभों पर टिकी है: पर्यटन, स्थानीय औद्योगिकीकरण, और पशुपालन, जो मिलकर इस क्षेत्र की तस्वीर बदल सकते हैं।

पलायन की समस्या के मूल में दशकों की नीतिगत उपेक्षा है। मैदानी क्षेत्रों पर आधारित विकास मॉडल ने पहाड़ों की विशिष्ट भौगोलिक और सामाजिक संरचना को नजरअंदाज किया है । इसके कारण सीमित आर्थिक अवसर, रोजगारपरक शिक्षा की कमी, और लचर स्वास्थ्य सेवाओं जैसी समस्याओं ने जन्म लिया, जिसने युवाओं को बेहतर जीवन की तलाश में अपने घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

इस पलायन ने न केवल हजारों गांवों को ‘घोस्ट विलेज’ में तब्दील कर दिया है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को भी खतरे में डाल दिया है। इससे भी गंभीर बात यह है कि सीमावर्ती गांवों के खाली होने से देश की “पहली रक्षा पंक्ति” कमजोर हो रही है। यह एक सामरिक शून्य पैदा कर रहा है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक सीधा खतरा है।

पलायन को रोकने का रास्ता एक ऐसे त्रि-आयामी मॉडल से होकर गुजरता है जो स्थानीय लोगों को उनकी जड़ों से जोड़कर सशक्त बनाता है ।

1. पर्यटन
पर्यटन हिमालयी अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन सकता है, बशर्ते यह कंक्रीट के जंगलों वाला व्यावसायिक पर्यटन न हो। हमें सतत और अनुभवात्मक पर्यटन को बढ़ावा देना होगा । होटलों की जगह स्थानीय घरों में ‘होमस्टे’ को बढ़ावा देने से आय सीधे स्थानीय परिवारों तक पहुँचती है। यह पर्यटकों को स्थानीय संस्कृति और खान-पान का अनुभव करने का अवसर भी देता है।

ट्रैकिंग, रिवर राफ्टिंग, और कैंपिंग जैसी गतिविधियों के लिए स्थानीय युवाओं को गाइड के रूप में प्रशिक्षित किया जा सकता है।

योग, ध्यान और धार्मिक स्थलों पर आधारित पर्यटन साल भर रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है।

2. स्थानीय औद्योनिकी का एक नेटवर्क स्थापित करना होगा जो स्थानीय संसाधनों और आधुनिक तकनीक पर आधारित हों ।

स्थानीय फलों (जैसे सेब, खुबानी, बुरांश) से जैम, जूस, अचार और चिप्स बनाने की छोटी इकाइयाँ लगाई जा सकती हैं। इससे किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिलेगा।
हिमालय जड़ी-बूटियों और सुगंधित पौधों का खजाना है। इनके प्रसंस्करण से तेल, दवाएं और सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाले उद्योग स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार का बड़ा स्रोत बन सकते हैं।

स्थानीय कला को बढ़ावा देकर और उसे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जोड़कर पारंपरिक कारीगरों की आय बढ़ाई जा सकती है।

3. पशुपालन
पशुपालन हमेशा से पहाड़ी जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है। इसे आधुनिक तकनीक और बाजार से जोड़कर एक आकर्षक व्यवसाय बनाया जा सकता है ।

बेहतर नस्ल की गायों और भैंसों के माध्यम से दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर पनीर, घी और मक्खन बनाने की इकाइयां लगाकर मूल्य संवर्धन (Value Addition) किया जा सकता है।

भेड़ और बकरी पालन को वैज्ञानिक तरीकों से बढ़ावा देकर ऊन और मांस उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। इसे स्थानीय हथकरघा उद्योग से जोड़कर एक पूरी आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) बनाई जा सकती है। यह साल भर एक स्थिर आय सुनिश्चित करता है, जो केवल खेती या पर्यटन पर निर्भरता को कम करता है।

हिमालय का भविष्य तभी सुरक्षित है जब यहां के गांव आबाद और खुशहाल हों। केवल योजनाओं की घोषणा करने के बजाय, पर्यटन, स्थानीय औद्योनिकी और पशुपालन के इस त्रि-आयामी मॉडल को जमीन पर उतारने की तत्काल आवश्यकता है। यह मॉडल न केवल पलायन के प्रवाह को रोकेगा, बल्कि ‘रिवर्स माइग्रेशन’ को भी प्रोत्साहित करेगा। जब युवा अपने गांवों में सम्मानजनक रोजगार और बेहतर जीवन की संभावनाएं देखेंगे, तो वे अपनी जड़ों की ओर अवश्य लौटेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button