विप के शगूफे पर अखिलेश की हरदा को पाती

डियर हरदा,
नये नये शिगूफे छोड़ने के लिए आपको बधाई, पश्वा जगरियों की पेंशन, सात साल में पहाड़ वापसी, हिटो पहाड़, काफल पार्टी, कखडी मुंगरी पार्टी आदि आदि शिगूफों के बाद आपका ये विधान परिषद वाला शिगूफा ….? कर्ज के बोझ में दबते जा रहे सूबे में कसम से ये सब सोच लेना और उसे बोल कह देना भी अपने आप में बहुत बड़ा पराक्रम ही है।
सत्ता से विछोह के बाद भी पिछले कुछ सालों में आपने अपने लिए सलाहकारों की नियुक्ति करके इतना तो जता ही दिया है कि राजनैतिक आकांक्षाये किस तरह से हुलार मार रही है पर सवाल अब सलाहकारों पर भी है कि उनसे सूबे में विधान परिषद के गठन जैसे राजनैतिक शिगूफों के लिए भी सलाह ली जाती है या आपने शिगूफा छोड़ दिया सो छोड़ दिया बस वे समेटे समेटे दौड़ते रहेंगे।
डियर हरदा…! विधान परिषद का गठन इस छोटे से राज्य में आपको कैसे उचित लगा ये तो आप ही बता सकते हैं लेकिन इसी विधान परिषद जैसी व्यवस्था का महात्मा गांधी ने भी विरोध किया था , गांधी के घोषित अनुयायी होने के नाते उनके इस व्यवस्था के विरोध में जो तर्क थे उन्हें भी पढ़ा समझा जाना चाहिए।
अगर गांधी से कोई वैचारिक असहमति हो गयी हो या जेहन में गांधी के विचारों को हाईजैक कर लिया गया है जैसे विचार आ गये हों तब भी आंध्रप्रदेश के हालिया घटनाक्रम का तकाजा जरूर कर लेना चाहिए ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत पर काम आ सके।
पर दिक्कत ये है कि इस सूबे के लिए आपने अधिकतर शिगूफे केवल और केवल खुद को सत्ता के केंद्र में रख कर खुद की सहूलियत के लिए ही सोचे जिनका व्यावहारिक निष्पादन से आपका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं।
उम्मीद करते हैं कि आप आगे भी यूँ ही शिगूफे छोड़ते रहेंगे और इन्ही शिगूफों से इस राज्य की महान जनता आपको राज्य का अधिपति स्वीकार करेगी।
अब समय आ गया है कि जुमलों के जवाब में शिगूफे छोड़ कर मौजूदगी स्थापित की जाए, आवाम का क्या है वो तो है ही खटने के लिए सो खटती रही है और आगे भी खटती ही रहेगी उनको तो जिंदाबाद करनी है सत्तर की कर ही रहे हैं उसमें इक्कीस और सही..!
धन्यवाद।
जिंदाबाद जिंदाबाद।