उत्तराखंड

देहरादून में 79 प्रतिशत का मानना है हालात हुए बदतर, 14 प्रतिशत ने कहा हालात हुए बेहतर, 7 प्रतिशत ने कहा कुछ नहीं कह सकते – निकले तीन स्पष्ट संदेश

देहरादून में 79 प्रतिशत का मानना है हालात हुए बदतर, 14 प्रतिशत ने कहा हालात हुए बेहतर, 7 प्रतिशत ने कहा कुछ नहीं कह सकते – निकले तीन स्पष्ट संदेश

देहरादून।

अनूप नौटियाल:-

नमस्कार दोस्तों,

कल सुबह ट्विटर पर मैंने एक पोल शुरू किया था। इसका उद्देश्य देहरादून शहर में पिछले 5-10 सालों में बदलाव को लेकर पब्लिक का क्या परसेप्शन है, ये समझने की एक छोटी सी कोशिश थी।

24 घंटे के इस ट्विटर पोल में कुल 512 वोट पड़े। वोटिंग कुछ इस तरह रही:

A. 79% ने कहा – हालात हुए बदतर
B. 14% ने कहा – हालात हुए बेहतर
C. 7% ने कहा – कुछ नहीं कह सकते

आपके साथ फाइनल रिजल्ट का स्क्रीनशॉट शेयर कर रहा हूँ। इस वोटिंग पैटर्न को देखकर तीन बातें साफ तौर पर दिखाई देती हैं:

A. 10 लोगों में से आठ का मानना है कि पिछले वर्षों में देहरादून के हालात बदतर हुए हैं। यह ट्रेंड बेहद गंभीर और चिंताजनक तस्वीर पेश करता है। सरकारी योजनाओं में खर्च हुए करोड़ों रुपये के बावजूद आम जनमानस की उत्तराखंड की राजधानी को लेकर बेरुखी, किसी भी सरकार, सिस्टम और उसकी एजेंसियों के लिए एक बड़ा संदेश देती है। मैं तो यही कहना चाहूंगा कि इस पूरी मशीनरी को पब्लिक के बीच जाकर उनकी अपेक्षाओं को समझना चाहिए, सुनना चाहिए। ये सरकार, शासन और सिस्टम को साफ तौर पर दर्शाता है कि आपको अर्बन यानी शहरी पॉलिसी रिव्यू, प्रोजेक्ट इम्प्लीमेंटेशन और पब्लिक पार्टिसिपेशन पर बहुत कुछ और करने की जरूरत है।

B. आगामी अर्बन लोकल बॉडी चुनावों में प्रदेश के समस्त राजनीतिक दल और उनके मेयर उम्मीदवारों को पब्लिक की इस नाराजगी को ध्यान में रखते हुए अपना विजन डॉक्यूमेंट पेश करना चाहिए। इस डॉक्यूमेंट को पेश करते हुए यह बेहद जरूरी है कि वे ईमानदारी से पब्लिक की इस नाराजगी के कारणों को जानने की कोशिश करें। सतही तौर पर सिर्फ समस्याओं का जिक्र करने से पब्लिक के टूटे हुए हौसले नहीं जोड़े जा सकते हैं। इसके लिए टाइम-बाउंड मैनिफेस्टो के अलावा वार्ड सभा या वार्ड कमेटी के गठन की गारंटी अवश्य होनी चाहिए। हमारे शहरी शासन की अवधारणा पूर्णता ग्राउंड अप यानि पब्लिक पार्टिसिपेशन पर आधारित होनी चाहिए। लोकलाइज्ड या सिटी बेस्ड प्लानिंग पब्लिक रायशुमारी के आधार पर होनी चाहिए, ना कि सत्ता के बंद कमरों से निकलनी चाहिएं।

C. इस छोटे से ट्विटर पोल में मुझे स्पष्ट तौर पर कई प्रायोजित से प्रतीत होने वाले कमेंट्स पढ़ने को मिले। मुझे नहीं मालूम कि ये लोग कौन हैं और इस तरह के कमेंट्स करके क्या साबित करना चाहते हैं। मेरे जैसे एक आम नागरिक के साधारण से ऑनलाइन पोल पर अपना समय लगाने से बेहतर होगा कि ये लोग उन लोगों से संवाद करें जो देहरादून और उत्तराखंड की शहरी बदहाली को लेकर चिंतित और नाराज हैं। पब्लिक सेंटिमेंट को आपके कमेंट्स नहीं बदलेंगे। इसके लिए पब्लिक सेंट्रिक, सिटी सेंट्रिक और विकेन्द्रीकृत (डिसेंट्रलाइज्ड) शहरी एप्रोच और एक्शन कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

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