उत्तराखंड

सूचना आयोग का निर्देश न मानना पड़ा भारी 

सूचना आयोग का निर्देश न मानना पड़ा भारी

– 13 साल पुराने बिल का भुगतान भी किया और क्षतिपूर्ति भी देनी पड़ेगी।

– मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय हरिद्वार पर दस हज़ार की क्षतिपूर्ति

देहरादून।

राज्य सूचना आयोग के निर्देशों का अनुपालन न करना कृषि विभाग को भारी पड़ा। आयोग के निर्णय का अनुपालन न किये जाने पर दर्ज शिकायत में राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय हरिद्वार पर दस हज़ार की क्षतिपूर्ति अधिरोपित की। शिकायत पर सुनवाई के दौरान आयोग द्वारा कड़ा रूख अपनाये जाने पर मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय हरिद्वार द्वारा अपीलार्थी के लगभग 13 साल पुराने 14,880/- रूपये के बिल का भुगतान भी किया गया। सतपुली पौड़ी ब्रजभूषण द्वारा कृषि भूमि संरक्षण विभाग में वर्ष 2011 से लंबित 14,880-/ रू0 के बिल भुगतान के संबंध में मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय से जानकारी चाही गयी थी। मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय द्वारा इस संबंध में ब्रजभूषण को सूचना न दिये जाने पर राज्य सूचना आयोग में अपील की गयी। एक वर्ष पूर्व अपील में आयोग के निर्देश पर मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय हरिद्वार द्वारा ब्रजभूषण के लंबित भुगतान का आश्वासन दिया गया था। अपील में दिये गये आयोग के निर्देश का अनुपालन न किये जाने पर ब्रजभूषण द्वारा आयोग में शिकायत दर्ज की गयी।

आयोग में शिकायत पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने आयोग के निर्देशों का अनुपालन न किये जाने पर प्रकरण से संबंधित अधिकारियों का जवाब तलब किया गया। शिकायत को गंभीरता से लेते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने मुख्य कृषि अधिकारी हरिद्वार का स्पष्टीकरण किया। आयोग के कडे़ रूख पर मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय द्वारा शिकायतकर्ता के लंबित बिल 14,880/- रू0 का भुगतान किया गया।

प्रस्तुत प्रकरण में शिकायतकर्ता ब्रजभूषण द्वारा मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय से वर्ष 2010-11 में उनके आई. पी. एम. कार्यक्रम के अंतर्गत व्यय के लम्बित रू0 14880/-(चैदह हजार आठ सौ अस्सी रूपये) के भुगतान के संबंध में दिनांक 22.06.2021 को सूचना चाही गयी थी। शिकायतकर्ता के अनुसार उन्हें यह भुगतान व्यय के फर्जी बिलों का आरोप लगाते हुए नहीं किया गया था। लेकिन वर्ष 2019 में विभागीय जांच के उपरांत उन्हें आरोप मुक्त कर दिया गया था। वर्ष 2019 से लगातार उनके द्वारा लम्बित बिलों के भुगतान हेतु प्रत्यावेदन प्रस्तुत किये गये जिस पर विभाग द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। वर्ष 2021 में 22/06/2021 में उनके द्वारा सूचना अधिकार के अंतर्गत इस संबंध में मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय से सूचना चाही गयी लेकिन इस संबंध में उन्हें कोई सूचना उपलब्ध नहीं करायी गयी। मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय हरिद्वार द्वारा सूचना उपलब्ध न कराये जाने पर 23.09.2021 को राज्य सूचना आयोग में इस संबंध में द्वितीय अपील की गयी। आयोग द्वारा अपील संख्या 34493 का 06/01/2023 को निस्तारित करते हुए मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय हरिद्वार को आवेदक को लम्बित रू0 14880/-(चैदह हजार आठ सौ अस्सी रूपये) का भुगतान करने के निर्देश दिये गये थे। आयोग के निर्देश के क्रम में मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय द्वारा भुगतान हेतु कार्यवाही तो शुरू की गयी लेकिन अपीलार्थी को भुगतान नहीं किया गया। विभाग के स्तर पर भुगतान हेतु हीलाहवाली की जाती रही। आयोग के निर्देश का साल भर से अधिक समय व्यतीत होने पर भी अनुपालन नहीं किये जाने पर शिकायतकर्ता द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम की धारा (18) के अंतर्गत 04/04/2024 को आयोग के समक्ष शिकायत प्रस्तुत की गयी।

प्रस्तुत शिकायत पर योजित सुनवाईयों में विभाग द्वारा प्रस्तुत कथनों एवं कृत कार्यवाही के परीक्षण से स्पष्ट है कि विभाग द्वारा आयोग के निर्देशों को गंभीरतापूर्वक लेते हुए अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया गया। मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय हरिद्वार द्वारा स्वीकृति के नाम पर प्रकरण कृषि निदेशालाय को अग्रसारित कर दिया गया और कृषि निदेशालय द्वारा इस पर स्पष्ट निर्णय नहीं लिया गया। शिकायत में पक्षकार बनाये गये कृषि निदेशालय द्वारा प्रश्नगत प्रकरण में अलग-अलग कथन प्रस्तुत किये जाने से स्पष्ट है कि निदेशालय द्वारा अपनी भूमिका का जिम्मेदारीपूर्वक निर्वहन नहीं किया गया। निदेशालय की भूमिका विभागीय कार्यों में मार्गदर्शन देने एवं उचित समाधान देने की होनी चाहिए लेकिन प्रस्तुत प्रकरण में निदेशालय की भूमिका गैरजिम्मेदाराना प्रतीत होती है। यह आश्चर्यजनक है कि विभाग द्वारा पांच साल से मात्र रू0 14880/-(चैदह हजार आठ सौ अस्सी रूपये) के भुगतान को लम्बित रखा गया एवं आयोग के निर्णय के उपरांत भी जिले से लेकर निदेशालय तक अनिर्णय की स्थिति बनायी गयी। प्रस्तुत प्रकरण में प्रकाश में आये तथ्यों से कृषि विभाग की कार्यप्रणाली एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर भी गंभीर सवाल खड़ा होता है प्रस्तुत शिकायत पर सुनवाई में मुख्य कृषि अधिकारी द्वारा यह अवगत कराया गया है कि शिकायतकर्ता को भुगतान कर दिया गया है। प्रश्न यह उठता है कि जो भुगतान मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय द्वारा आयोग में धारा (18) के अंतर्गत सुनवाई के दौरान किया गया वह पहले ही वर्ष 2019 में अथवा उसके उपरांत आयोग के निर्णय के क्रम में 2023 में क्यों नहीं किया गया? मात्र रू0 14880/-(चैदह हजार आठ सौ अस्सी रूपये) के वैध भुगतान के लिए पांच वर्ष तक विभाग, विभागीय कर्मियों, शिकायतकर्ता एवं आयोग के समय, साधन एवं श्रम व्यर्थ क्यों किया गया?

शिकायतकर्ता का कथन है कि अपने ही विभाग में अपने मात्र रू0 14880/-(चैदह हजार आठ सौ अस्सी रूपये) के वैध भुगतान के लिये उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा है। सूचना का अधिकार नहीं होता तो यह संभव नहीं था फिर भी उन्हें इसके लिए लंबे समय तक जूझना पड़ा इसमें उन्हें मानसिक आर्थिक एवं सामाजिक क्षति पहुंची है। आयोग द्वारा दिए गए निर्देश के क्रम में लोक प्राधिकारी द्वारा शिकायतकर्ता की क्षतिपूर्ति की मांग के संबंध में किसी प्रकार का कोई लिखित स्पष्टीकरण आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है।

उक्त से स्पष्ट है कि लोक प्राधिकारी को आयोग द्वारा निर्गत क्षतिपूर्ति के नोटिस के संबंध में कुछ नहीं कहना है। वर्णित स्थिति में लोक प्राधिकारी/मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय, हरिद्वार पर रूपये 10,000/- (दस हजार रूपये) की क्षतिपूर्ति अधिरोपित की जाती है। लोक प्राधिकारी / मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय हरिद्वार को निर्देशित किया जाता है कि आदेश प्राप्ति के 1 माह के भीतर उपरोक्त अधिरोपित क्षतिपूर्ति की धनराशि अपीलकर्ता को उपलब्ध कराते हुए कृत अनुपालन से आयोग को अवगत कराना सुनिश्चित किया जाये। प्रस्तुत प्रकरण में कृषि विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा हुआ है अतः आदेश की प्रति कृषि सचिव उत्तराखण्ड शासन एवं महानिदेशक कृषि को इस आशय से प्रेषित की जा रही है कि वह प्रश्नगत प्रकरण का संज्ञान लेते हुए विभागीय कार्यप्रणाली को पारदर्शी, व्यवस्थित तथा जवाबदेह बनाने की दिशा में प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे।

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