उत्तराखंड

त्रिस्तरीय पंचायतों का कार्यकाल 2 वर्ष बढ़ाने की मांग, 1 जुलाई को 12 जिलों में किया जाएगा धरना प्रदर्शन 

1 जुलाई को 12 जिलों में एक साथ धरना प्रदर्शन

“एक राष्ट्र एक चुनाव” की तर्ज पर उत्तराखंड में हो पंचायत चुनाव उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन का ऐलान

राजधानी में होगा किसान आंदोलन की तर्ज पर उग्र आंदोलन

पिथौरागढ़।

उत्तराखंड के 12 जनपदों के त्रिस्तरीय पंचायतों का कार्यकाल 2 वर्ष बढ़ाए जाने की मांग को लेकर 1 जुलाई को राज्य के सभी जनपद मुख्यालयों में धरना प्रदर्शन किया जाएगा। “एक राष्ट्र एक चुनाव की तर्ज” पर उत्तराखंड में “एक राज्य एक पंचायत चुनाव” की मांग को लेकर आंदोलन को तेज करने का फैसला लिया गया है। सरकार ने अगर इस मांग को नहीं माना तो राजधानी में दिल्ली के किसान आंदोलन के तर्ज पर उग्र आंदोलन भी किया जाएगा।

उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन के कार्यक्रम संयोजक तथा जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने बताया कि उत्तराखंड में वर्तमान में कार्यरत पंचायतों का कार्यकाल 2 वर्ष बढ़ाए जाने को लेकर 1 जुलाई को 12 जिलों के जिला मुख्यालय में एक साथ धरना प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार को इस संदर्भ में दर्जनों बाद प्रस्ताव दिया जा चुका है। अभी तक राज्य सरकार ने अपनी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी है। राज्य सरकार की ओर से पंचायती राज विभाग तथा महाधिवक्ता उत्तराखंड से राय लिए जाने का आश्वासन दिया गया था। इस पर भी राज्य सरकार कुछ नहीं कर पाई है।

उन्होंने कहा कि कोविड के समय पंचायतें 2 साल तक कोई कार्य नहीं कर पाई। पंचायतों की सामान्य बैठक के तक नहीं हो पाई। इस समय को पंचायतों के कार्यकाल से नहीं जोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास कार्यकाल को बढ़ाए जाने के लिए पर्याप्त कानूनी आधार है।

उन्होंने कहा कि 1 जुलाई के धरना प्रदर्शन में जिला पंचायत अध्यक्ष, क्षेत्र प्रमुख के साथ-साथ ग्राम प्रधान, वार्ड मेंबर्स, क्षेत्र पंचायत सदस्य, जिला पंचायत सदस्य भाग लेंगे।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में 70 हजार प्रतिनिधियों के संगठन की एक सूत्रीय मांग पर जीत के बाद ही वह शांत होगा।

उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में बनी समिति ने भी पंचायतों का कार्यकाल बढ़ाने तथा घटाने का सुझाव दिया है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के “एक देश एक चुनाव” के विजन को सफल बनाने के लिए उत्तराखंड में “एक राज्य एक पंचायत चुनाव” पर पंचायत के प्रतिनिधियों के सुझाव को राज्य सरकार द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अगर सरकार नहीं मानी तो किसान आंदोलन के तर्ज पर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में आंदोलन होगा। तब राज्य सरकार हमें कुछ भी नहीं कह सकती।

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