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शस्त्र उठाकर, संघर्ष करके आपातकाल का विरोध करना गलत

लोकतंत्र, प्रजातंत्र के अंतर्गत ही अपने को संघर्ष करना चाहिए संविधानात्मक ढंग से ही करना चाहिए। बंदूक उठा कर क्रान्ति नहीं करनी है। शस्त्र उठाकर, संघर्ष करके आपातकाल का विरोध करना गलत हैं। ऐसा समिति का स्पष्ट अभिप्राय था। लोगों को हिंसा के मार्ग पर नहीं लाना, यह स्पष्ट निर्देशित था। सत्याग्रह यानि कैसे…तो किसी भी सड़क के चौराहे पर या किसी जगह पर, बस स्टैंड पर, रेलवे स्टेशन पर, जितनी संख्या में हो सके उतनी संख्या में लोग आना।

आपातकाल के विरोध में नारे लगाना, अपनी डिमांड के नारे लगाना। पुलिस आएगी पकड़ेगी, लेकर जाएंगे। सत्याग्रह करना, और यथा संभव साहित्य पर्चे लोगों को देना, क्योंकि कोई और रास्ता नहीं था। इसलिए सत्याग्रह के लिए जाते समय जेब में, थैली में पर्चे रखो, सबको दो।

इस आपातकाल को जनता ने स्वीकार नहीं किया है, यह लोकतंत्र के विरुद्ध है। लोकतंत्र का दमन हो गया है। इसलिए इसके विरुद्ध आवाज उठाना, समाज मरा नहीं है, ऐसा दिखाना, सत्याग्रह का यह बहुत बड़ा एक उद्देश्य था। जगह जगह पर लगभग 49 हजार से अधिक सत्याग्रही अरेस्ट हुए।

संघ ने सारे संघर्ष में, जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में और बाद में आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष में काम किया। इसलिए संघ का दमन करना, यह मुख्य बात होने के कारण अन्य 25 संगठन के साथ संघ को भी बैन कर दिया था। इसलिए संघ पर प्रतिबंध लगाना और संघ का दमन करना, यह सरकार के वरिष्ठों के नेताओं के प्रधानमंत्री का स्पष्ट उद्देश्य था।

संघ का दमन करने के लिए स्वयंसेवकों की पुरानी पुरानी सूची उनको मिली और कहीं किसी डायरी में मिल गयी या कार्यालय उन्होंने बंद करवाए कार्यालय पर छापेमारी की, कार्यालय पर ताला लगाया, कार्यालय के अंदर जो सूची मिली तो • कार्यकर्ताओं की सूची, गुरु दक्षिणा की सूची तो ऐसी सूची पकड़-पकड़ कर उन घरों में गए। घर पर बैठे व्यक्ति को भी ले गए, उनको संघ की व्यवस्था पद्धति का लाभ मिला। संघ के कार्यकर्ता सरकारी या कॉलेज में बैंक में नौकरी में हैं तो दबाव डालकर उनको वहां सस्पेंड किया, व्यापारियों पर दबाव बनाया। बहुत सारे स्वयंसेवक नित्य की शाखा में नहीं थे।

कई वर्ष पहले वो शाखा के नित्य के काम में थे। किसी न किसी व्यक्तिगत कारण से, घर की कुछ कठिनाई के कारण नित्य शाखा के काम में नहीं होंगे। हमारे लिए गर्व का विषय है कि बहुत बड़ी संख्या में ऐसे स्वयंसेवक आपातकाल में भागे नहीं, दूर नहीं गए, उल्टा सक्रिय हो गए। उन्होंने कहा- देखो, हम स्वयंसेवक हैं। पुलिस को पता नहीं है क्योंकि हमारे नाम अभी सूची में नहीं है, इसलिए हमारे घर का उपयोग करिए हमारे घर में भूमिगत कार्यकर्ता रुकें, भोजन करें, क्योंकि हमारे घर पुलिस के राडार में नहीं है।

ये कहने की हिम्मत स्वयंसेवकों ने की, उन्होंने अपनी तरफ से हर प्रकार का सहयोग किया दूसरे संगठन, दूसरी पार्टी…के लिए भी स्वयंसेवकों ने किया। सर्वोदय के दो कार्यकर्ताओं के घर में कर्नाटक में जब परिस्थिति अच्छी नहीं थी, संघ के स्वयंसेवकों ने उनकी व्यवस्था की। संघर्ष के लिए जो निधि चाहिए, वो भी स्वयंसेवकों ने समाज से इकट्ठा की।

किसी भी देश में लोकतंत्र जहां है, वहां लोक की आवाज को दमन करने का, कुचलने का कोई भी प्रयत्न सफल नहीं हो सकता। और कुछ समय के लिए आप दमन कर सकते हैं। जैसे 20 महीने आपातकाल रहा लेकिन दगन नहीं हो सकता। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों की आवाज हमेशा बुलंद रह सकती है, उसको बुलंद रहना चाहिए।

आपातकाल के विरुद्ध के संघर्ष क्यों सफल हुआ? क्योंकि लोगों को जागृत करने और संगठनात्मक नेतृत्व ने उस समय लोगों को योग्य मार्गदर्शन दिया। उस आंदोलन में विशेष कर विद्यार्थियों, युवाओं के आंदोलन से देश भर में एक परिवर्तन के लिए आंदोलन चला। इसलिए देश के नौजवान विद्यार्थी और नौजवान लोग देश समाज के बारे में जागृत रहकर अपनी आवाज उठाना, सही दिशा क्या है इसके बारे में जिर्णय करते हुए एक प्रबल जनशक्ति की आवाज बनना, यह हमेशा उनकी ट्रेनिंग रहती हैं तो समाज के लिए हमेशा एक रक्षाकवच बनता है, आशादीप बनता है ।

जेल में सुबह से शाम तक हम कैम्प जैसे चलाते थे। डीआईआर में जिनके केस चलते वे 15 दिन या एक महीने में कई बार जेल से छूट जाते थे, बेल मिल जाती थी। मीसा में, न कोई चार्जशीट, न ही कोई कोर्ट, ऐसे चलता था। इसलिए मीसा में रहने वाले लोगों की जीवन शैली अलग थी।

मीसा में रहने वाले लोग •आए तो बाहर जाएंगे, कब जाएंगे कोई पता नहीं। जेल में अंग्रेजों के जमाने के कानून थे। उन दिनों वो कानून ही चलता था| स्वयंसेवकों ने जेल के अंदर उन कानूनों के खिलाफ भी संघर्ष किया, कानून के खिलाफ ज्ञापन देना, उसके खिलाफ सत्याग्रह करना, अंदर अनशन करना, ये सब किया तो इस कारण प्रशासन को कुछ कानून बदलना पड़े।

इसी बीच, सॉलिसिटर जनरल नीरन डे ने सुप्रीम कोर्ट में आर्गुमेंट किया और उनके आर्ग्युमेंट को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया। उनका आर्गुमेंट था- मीसा के तहत लोगों को देश की सुरक्षा के लिए रखा है, उनके ऊपर कोई चार्जशीट नहीं और कब तक रहना है, इसकी कोई गारंटी नहीं है। They may end their life in jail, दूसरा आर्गुमेंट किया – यदि देश की सुरक्षा के लिए उनको जेल के अंदर ही शूट भी किया तो भी सरकार पर कोई अपराध नहीं है। लोकसभा के सदस्य कामत जे कमेंट किया – इट इज़ जॉट अप्रेंडिंग द कांस्टीट्यूशन, इट इज नॉट मेंडिंग

द कॉस्टीट्यूशन, इट इज एंडिंग द कॉस्टीट्यूशना

सरकार ने संविधान के साथ क्या किया, इट वाज़ ऑलमोस्ट एंडिंग द कॉस्टीट्यूशना उन्होंने अमेंडमेंट किया, संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म, दो शब्दों को जोड़ा। जो पहले नहीं थे। वो आज तक हैं। उस समय संविधान के साथ छेड़छाड़ करने के भरपूर प्रयत्न किए गए। लोकसभा के पांच वर्ष के कार्यकाल को छह वर्ष किया, एक वर्ष ज्यादा कर दिया था। उन सारी चीजों को जनता सरकार आने के बाद फिर से संशोधन करके ठीक किया गया।

मेरा हमेशा कहना है – लोकतंत्र सुरक्षित है, अपने देश की संसदीय व्यवस्था, संविधान वगैरह के कारण लेकिन उससे भी बढ़ कर जागृत समाज और उनको जागृत रखने के कार्य करने वाले समाज का गैर राजनीतिक नेतृत्व उनके जीवन की स्वच्छ, निःस्वार्थ और देश भक्ति की उनकी प्रखरता, यह यदि है तो समाज के लोग भी ऐसे लोगों के समर्थन में खड़े होते हैं। इसलिए हमेशा देश के लिए इस प्रकार का नेतृत्व समाज में हर क्षेत्र में रहना चाहिए, वह देश के लिए भरोसा हैं।

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