ट्रिब्युनल ने विधि विरूद्ध मान निरस्त किया एसएसपी का आदेश

आईजी के आदेश को भी माना महान वैधानिक त्रुटि
नैनीताल।विशेष न्यायालय (ट्रिब्युनल) की पीठ ने एसएसपी और आईजी सब इंस्पैक्टर मुकेश मिश्रा के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही में किए गए आदेशों को निरस्त कर दिया। ट्रिब्युनल की बेंच ने एसएसपी के आदेश को द्वेषपूर्ण, तथ्यों व विधि विरूद्ध और आईजी के आदेश को महान वैधानिक त्रुटि मानते हुये निरस्त किया है।
ऊधमसिंह नगर में तैनात दारोगा मुकेश मिश्रा की ओर से अधिवक्ता नदीम उद्दीन ने अधिकरण की नैनीताल पीठ में याचिका दायर कर कहा गया कि 2019 में वह चौकी प्रभारी बांसफोड़ान में नियुक्त था। तब रमेश रावत द्वारा दिए गए शिकायती प्रार्थना पत्र में उसके विरूद्ध नशे एवं सट्टे कारोबारियों के साथ संबंध के झूठे व निराधार आरोप लगाए गए। शिकायतकर्ता की पुष्टि तथा शपथ पत्र लिए बगैर अपर पुलिस अधीक्षक काशीपुर से प्रारंभिक जांच करायी गयी। इसमें अवैध रूप से निकाली गयी काल रिकार्ड के आधार पर शिकायत के आरोपों की पुष्टि न होने का निष्कर्ष देने के साथ अवैध रूप से अवैध कारोबार मे संलिप्त व्यक्तियों के साथ चौकी में उठने बैठने से पुलिस विभाग की छवि धूमिल होने का निष्कर्ष दे दिया।
वरिष्ठ एसएसपी ने इस प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर उसका 2019 का सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रोकने का नोटिस दिया। उत्तर पर विचार किये बगैर ही सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रोकने का दण्ड दे दिया। इसकी अपील आईजी से की गई। उन्होंने भी अपील खारिज कर दी। याचिका में विभागीय दण्ड के आदेश व अपील आदेश को निरस्त करके, उसके आधार पर रूके सेवा लाभों को दिलाने का निवेदन किया गया।
याचिकाकर्ता की ओर से नदीम उद्दीन ने विभागीय जांच, दण्ड आदेश व अपील आदेश को अवैध निराधार तथा प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के आधार पर निरस्त होने योग्य बताया। अधिकरण उपाध्यक्ष (न्यायिक) राजेन्द्र सिंह की पीठ ने नदीम के तर्कों से सहमत होते हुये वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उधमसिंह नगर के दण्ड आदेश तथा पुलिस महानिरीक्षक कुमाऊं के अपील आदेश को पूर्णतः तथ्यों एवं विधि के विरूद्ध होने के कारण निरस्त होने योग्य मानते हुये निरस्त कर दिया। अधिकरण ने फैसले में यह भी लिखा है कि पुलिस महानिरीक्षक ने मुकेश मिश्रा की सत्यनिष्ठा के प्रमाण पत्र को रोके जाने के आदेश को पुष्ट किये जाने में महान वैधानिक त्रुटि की है।
उपाध्यक्ष (न्यायिक) राजेन्द्र सिंह ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि केवल किसी मोबाइल नम्बर पर बात होने भर से पुलिस की छवि धूमिल होने बाबत कोई प्रतिकूल अर्थ निकाला जाना पूरी तरह विधि विरूद्ध और ऐसे कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार अधिकारी को हतोत्साहित करने के तुल्य है।