तस्वीर का सच

हरकी पैड़ी पर ‘गंगा’ नहीं, वहां तो है ‘गंगनहर’

कांग्रेसी सरकार के समय में लगे ‘ग्रहण’ को नहीं हटा पा रही सरकार

2016 में हरीश सरकार ने जारी किया था नोटिफिकेशन

हरिद्वार के शहरी विकास मंत्री ने भी साधी चुप्पी

नवीन पाण्डेय

देहरादून/हरिद्वार। महाकुंभ-2021 के शाही स्नान में महज सात महीने का वक्त रह गया है। लेकिन हरकी पैडी के विश्व प्रसिद्ध ब्रह्मकुंड से गुजरने वाली मां गंगा सरकारी दस्तावेजों में आज भी महज गंगनहर ही है। तत्कालीन हरीश रावत की सरकार ने 2016 में एक नोटिफिकेशन जारी करके गंगा को गंगनहर में तब्दील कर दिया। सनातन धर्म के सहारे सत्ता में आने वाली बीजेपी की सरकार ने कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाया। हैरानी की बात तो ये भी है कि शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक तो मां गंगा के आशीर्वाद से ही विधायक और मंत्री बनते रहे लेकिन उनकी इस मुदृदे पर सियासी तौर पर मौन रहना भी कई सवाल खड़े करता है। श्रीगंगा सभा एक बार फिर नोटिफिकेशन के खिलाफ मुखर हुई है। देखना होगा कि हरकी पैडी की गंगा को सरकारी दस्तावेज में गंगनहर से गंगा के रूप में कब मोक्ष मिलती है।

देश ही नहीं दुनिया की आस्था की केंद्र मां गंगा सरकार के महज एक नोटिफिकेशन से गंगनहर में तब्दील हो जाती है। बात वर्ष 2016 की है। तत्कालीन हरीश रावत की सरकार के शहरी विकास विभाग की ओर से आदेश जारी कर भागीरथी बिंदु यानि मुख्य धारा से खड़खड़ी, ब्रह्मकुंड, हरकी पैडी होते हुए डामकोठी तक की गंगा को गंगनहर में तब्दील कर दिया गया। यह सियासी खेल राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के हरिद्वार से उत्तर प्रदेश के उन्नाव तक गंगा किनारे सौ मीटर के दायरे में आने वाले निर्माण और पांच सौ मीटर के दायरे में कूडा फेंकने पर रोक लगाने के आदेश से बचने के लिए किया था।

तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हरकी पैडी से गुजरने वाली गंगा को गंगनहर में तब्दील कर दिया और रातों-रात दो सौ मीटर एनजीटी के दायरे में आने वाले होटल, धर्मशालाएं, आश्रम सहित अन्य बिल्डिंगों को बचा लिया लेकिन आस्था पर जो चोट पहुंची उसका कोई हिसाब नहीं रखा गया। श्री गंगा सभा की ओर विरोध किया गया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

सत्ता में सनातन धर्म के पैरोकार और हिंदूओं की वकालत का दावा करने वाली बीजेपी की सरकार प्रदेश की सत्ता में आई। वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से श्रीगंगा सभा और संतों ने मुलाकात कर नोटिफिकेशन रदृद करने की मांग की है। हैरानी की बात ये है कि सत्ता में आने के बावजूद त्रिवेंद्र सरकार ने हरीश रावत की सरकार की गलती को सुधारने का काम अब तक नहीं किया। आश्वासन तो त्रिवेन्द्र सरकार से खुद मिले, लेकिन अमली जामा अब तक नहीं पहुंचाया गया। एक बार फिर श्री गंगा सभा आंदोलन के मूड में है। अदालत का दरवाजा खटखटाने की बात कह रही, पहले भी हुआ लेकिन केवल आश्वासन भर मिला। अब देखना दिलचस्प होगा कि श्री गंगा सभा इस आंदोलन को कहां तक ले जा पाती है और दस्तावेजों में बंधे हरकी पैडी गंगनहर को गंगा का स्वरूप कब दिला पाती है। 

सवालः 2021 का महाकुंभ क्या गंगनहर में होगा

अब सवाल उठना लाजमी है कि क्या 2021 का महाकुंभ गंगनहर में होगा। शाही स्नान की तिथियां तो सरकार घोषित कर चुकी है। अखाड़ों के साथ बैठक कर शाही स्नान का एलान हो चुका है। अरबों के बजट से स्थाई और अस्थाई निर्माण चल रहा है लेकिन एक अदद ब्रह्मकुंड के गंगनहर के नोटिफिकेशन की बाट जोह रही गंगा को आखिर इतना इंतजार क्यों कराया जा रहा है। सियासत के जानकार ये तक कह रहे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं अबकी महाकुंभ 2021 को नीलधारा की ओर ले जाने की अंदरखाने कुछ तैयारियां चल रही हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो फिर जब शाही स्नान की चार तारीखें तय हो गई तो हरकी पैडी से गुजरने वाली गंगा का वह नोटिफिकेशन क्यों नहीं रद किया गया।

2010 में शंकराचार्य ने नील धारा में किया था स्नान

शंकराचार्य स्वरूपानंद ने नीलधारा में किया था स्नान महाकुंभ 2010 में नीलधारा को ही असली गंगा की बात करके शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने बड़ा मुदृदा उठाया था। हालांकि पक्ष-विपक्ष में कई अखाड़े और संत समाज सामने आया। कुंभ 2010 का शाही स्नान हरकी पैडी पर ही हुआ, लेकिन उस समय उठी चिंगारी ने कहीं न कहीं विवाद को जन्म दे दिया था। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती तो नीलधारा में स्नान कर ये संदेश तक दे चुके थे कि मुख्य धारा गंगा की नीलधारा ही है हालांकि ब्रह्मकुंड पर गंगा या गंगनहर इस पर पूछे गए सवाल पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया था।

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