मंत्रिमंडल विस्तारः किसके सिर सजेगा ताज
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के सामने ‘एक अनार-सौ बीमार’ जैसी स्थिति
अब तक तो सच साबित नहीं हुईं हैं ऐसी ही चर्चाएं
देहरादून। सूबे में कैबिनेट विस्तार की चर्चा एक बार फिर तेज हो रही है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या विधायकों का साढ़े तीन का इंतजार खत्म होगा या एक बार फिर से ये विस्तार चर्चा तक ही सीमित रहेगा। एक और बड़ा सवाल है कि सीएम के सामने ‘एक अनार-सौ बीमार’ वाली जैसी स्थिति है। ऐसे में अगर ताज सजता भी है तो आखिर किनके सिर पर।
2017 में सरकार बनाने के साथ ही भाजपा ने उत्तराखंड कैबिनेट में दो पद खाली रखे थे। एक साल पहले काबीना मंत्री रहे प्रकाश पंत की असमय और दुःखद मृत्यु से एक पद और खाली हो गया। इस तरह उत्तराखंड कैबिनेट में तीन पद खाली हैं। इन पदों पर विधायकों की ताजपोशी को लेकर लगभग हर पांच-छह बाद चर्चाएं तेज होती हैं। लेकिन विधायकों का इंतजार खत्म होता नहीं दिख रहा।
आम आदमी पार्टी की उत्तराखंड चुनाव में दावेदारी के बीच यह मुद्दा एक बार फिर गर्म हो रहा है। प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने भी पदभार संभालते ही इसी मुद्दे को उठाया पर बाद में बात आई-गई हो गई। कोर कमेटी की बैठक में भी यह मुद्दा उठा और हर बार की तरह ही इस बार भी इस मामले को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का विशेषाधिकार बताते हुए उन्हीं पर फैसला छोड़ दिय़ा गया है।
ऐसे में यह चर्चा फिर तेज हो रही है कि क्या इस बार सीएम अपने विधायकों के साढ़े तीन पुराने अरमानों को पूरा करेंगे। सियासी गलियारों में चर्चा है कि भले ही इस मामले में गेंद सीएम त्रिवेंद्र के पाले में सरका दी गई है। लेकिन उनकी अपनी मजबूरी भी। कैबिनेट के तीन पदों को लेकर कम से कम एक दर्जन विधायकों की अपने-अपने अंदाज में दावेदारी है। हालात ‘एक अनार-सौ बीमार’ जैसे हैं। ऐसे में सीएम के सामने दिक्कत ये आने वाली है कि किस विधायक को नाराज करें और किसके सिर ताज रखें। हर विधायक खुद को मंत्री पद का दावेदार साबित कर रहा है। चुनाव में ज्यादा वक्त अब बचा नहीं है, ऐसे में किसकी नाराजगी मोल ली जाए। अब देखना होगा कि सीएम त्रिवेंद्र क्या फैसला करते हैं। ताजपोशी के लिए विधायकों का चयन करते हैं या फिर यह विस्तार की बात एक बार महज चर्चा ही साबित होती है।
एक वरिष्ठ विधायक नहीं चाहते मंत्री पद
कैबिनेट विस्तार की बात होते ही सबसे ज्यादा नाम एक वरिष्ठ विधायक का ही लिया जाता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। बताया जा रहा है कि इन विधायक जी ने अपने समर्थकों को साफ कह दिया है कि चंद माह के लिए मंत्री पद लेने का कोई फायदा नहीं है। मंत्री बनते ही क्षेत्र की जनता की उम्मीदों को पंख लग जाएंगे और अगर कम समय व अन्य वजहों से उम्मीदों को पूरा करने में समस्या आई तो इसका नुकसान चुनाव में हो सकता है।