डॉल्फिनः भारत की एक अहम संकटापन्न प्रजाति
संरक्षण को पीएम की पहल पर प्रोजेक्ट डॉल्फिन पर काम तेज
देश में मीठे पानी में रहने वाली डॉल्फिन की संख्या 3700
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट नवीन पाण्डेय की खास रपट
हरिद्वार। प्रधानमंत्री ने 74 वें स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में डॉल्फिन के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए प्रोजेक्ट डॉल्फिन की दिशा में काम करने की बात कही थी। अब उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में इस ओर तेजी से काम चल रहा है।
नदियों में पाई जाने वाली डॉल्फिन भारत की एक महत्वपूर्ण संकटापन्न प्रजाति है। इसे वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में शामिल किया गया है। इसकी संख्या में गिरावट के मुख्य कारण हैं अवैध शिकार और नदी के घटते प्रवाह, भारी तलछट, बैराज के निर्माण हैं। एक अनुमान के मुताबिक विलुप्त हो रही डॉल्फिन की तादाद अब देश की नदियों में 3700 के करीब पहुंच गई है। हालांकि कुछ दशक पहले इनकी तादाद 5000 से भी अधिक थी। बहरहाल, संरक्षण और संवर्द्धन की दिशा में सकारात्मक परिणाम फिलहाल दिखाई देने लगे हैं।
शिकार को आवाज छोड़कर जान लेती है डाल्फिन
डॉल्फिन को अमूमन लोग मछली समझते हैं। लेकिन स्तनधारी है। एक बड़ी खासियत यह है कि यह कंपन वाली आवाज निकालती है जो किसी भी चीज से टकराकर वापस डॉल्फिन के पास आ जाती है। इससे डॉल्फिन को पता चल जाता है कि शिकार कितना बड़ा और कितने करीब है। डॉल्फिन आवाज और सीटियों से एक दूसरे से बात करती हैं। यह 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकती है। डॉल्फिन 10-15 मिनट तक पानी के अंदर रह सकती है, लेकिन वह पानी के अंदर सांस नहीं ले सकती। उसे सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आना पड़ता है। पर्यावरण और वन मंत्रालय ने राष्ट्रीय एक्वाटिक पशु के रूप में 18 मई 2010 को गंगा नदी डॉल्फिन अधिसूचित किया। यह स्तनधारी जंतु पवित्र गंगा की शुद्धता को भी प्रकट करती है, क्योंकि यह केवल शुद्ध और मीठे पानी में ही जीवित रह सकता है।
मेरठ से बिजनौर तक डॉल्फ़िन की गिनती
विगत दिनों हरिद्वार से आगे मेरठ से बिजनौर तक गंगा नदी में 30 से ज्यादा डॉल्फिन देखी गई हैं। मेरठ की प्रभागीय वनाधिकारी अदिति शर्मा ने बताया कि डॉल्फिन को लेकर नई नीति बनाई गई है। इससे इको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। पिछले तीन साल में यहां डॉल्फिन के बच्चे भी देखे गए हैं। लगातार इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है।
भारत की नदियों में अब केवल 3700 डॉल्फिन
गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों में अलावा डॉल्फिन छोटी सहायक नदियों में भी यदाकदा मिलती हैं। इसमें घाघरा, कोसी, चंबल, सोन, गंडक आदि शामिल हैं। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड की नदियों में डॉल्फिन को देखा गया है। दो दशक पूर्व तक भारत में इनकी संख्या 5000 के आस-पास थी। एक अनुमान के मुताबिक भारतीय नदियों में करीब 3700 डॉल्फिन की मौजूदगी की बात सामने आई है। प्रोजेक्ट डॉल्फिन मोदी सरकार के जारी नमामि गंगे मिशन की भी मदद कर रहा है। गंगा नदी की सेहत ठीक होने के साथ ही डॉल्फिन की मौजूदगी कई नदियों में बढ़ गई हैं और उसकी साइटिंग भी अब होने लगी है। जो एक सकारात्मक पहलू है। उत्तराखंड के हरिद्वार की गंगा से आगे उत्तरप्रदेश के बिजनौर बैराज से नरौरा तक लगभग 225 किलोमीटर की धारा में डॉल्फिन की गणना की जाती रही है।
बिहार की नदियों में सबसे अधिक डॉल्फिन
एक अनुमान के मुताबिक पूरी दुनिया में जितनी डॉल्फिन की संख्या है उसकी 50 फीसदी डॉल्फिन बिहार की नदियों में पाई जाती हैं। वहीं देश का 80 फीसदी डॉल्फिन बिहार में ही पाई जाती हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक केवल गंगा नदी में इसकी संख्या 1400 है। जबकि गंडक एवं अन्य नदियों को मिलाकर इसकी संख्या और अधिक बढ़ जाती है।
नमामि गंगे, भारतीय वन्य जीव संस्थान, उत्तर प्रदेश सरकार और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की ओर से चौधरी चरण सिंह मध्य गंगा बैराज मुजफ्फरनगर में डॉल्फिन के संरक्षण और संवद्धन की योजना लांच करने के साथ ही जलीय जीव के साथ ईको टूरिज्म को भी बढ़ावा दिया जाएगा। कार्यक्रम में नेशनल मिशन आफ क्लीन गंगा के डायरेक्टर जनरल राजीव रंजन मिश्रा मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत कर रहे हैं।
संजय कुमार, कमिश्नर, सहारनपुर मंडल।
(लखनऊ, मेरठ, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, देहरादून, हरिद्वार से संग्रहीत रिपोर्ट के आधार पर)