कोरोनाः उत्तराखंड में प्लाज्मा थैरेपी शुरू
ऋषिकेश एम्स बना उत्तराखंड का पहला प्लाज्मा डोनेट सेंटर
देहरादून। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी शुरू हो गई है। अब कोविड-19 को पराजित कर चुके मरीज अन्य संक्रमितों की जीवन रक्षा में अहम भूमिका निभा सकते हैं। उत्तराखंड राज्य में एम्स ऋषिकेश इस प्रक्रिया को शुरू करने में अग्रणीय रहा है।
एम्स ऋषिकेश में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा डोनेशन प्रारंभ हो चुका है। इसी क्रम में बीते माह 24 जुलाई को कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा डोनर्स के प्रथम समुह को इस प्रकिया के बारे में जानकारी दी गई थी। बताया गया कि क्रमशः पिछले माह 27 जुलाई, 29 जुलाई व इसी माह एक अगस्त को तीन कोविड -19 संक्रमण से ठीक हुए मरीजों (कॉनवेल्सेंट रक्तदाताओं) से तीन यूनिट कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा एकत्रित किया गया था। इन प्लाज्मा यूनिट्स का आगे भी कोविड -19 बीमारी से ग्रसित रोगियों में आधान किया जाएगा।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि जब कोई व्यक्ति किसी भी सूक्ष्म जीव से संक्रमित हो जाता है, तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसके खिलाफ लड़ने के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन करने का काम करती है। संक्रमित होकर स्वस्थ हुए व्यक्ति में निर्मित एंटीबॉडी, एक रोगी में सक्रिय वायरस को बेअसर कर देगा, साथ ही उसकी रिकवरी में तेजी लाने में मदद करेगा। डा. प्रसन्न कुमार पांडा ने बताया कि एक कोविड -19 से ग्रसित मरीज को दिए जा रहे अन्य तरह के उपचार से लाभ प्राप्त नहीं हो रहा था। लिहाजा ऐसे मरीज में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी प्रारंभ की गई। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक विभागाध्यक्ष डा. गीता नेगी ने कहा कि कोई भी कोरोना संक्रमित व्यक्ति जो नेगेटिव आ चुका हो, वह 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट कर सकता है।
ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. दलजीत कौर, डा. सुशांत कुमार मीनिया व डा. आशीष जैन ने कॉनवेल्सेंट रक्तदाताओं से अपील की है कि वे इस प्रकिया के बारे में जनसामान्य में ज्यादा से ज्यादा जागरुकता फैलाएं ताकि भविष्य में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा यूनिट्स की कमी नहीं पड़े।