गर हो ‘गुलाब’ तो करो सबित
और बताओ अपनी ‘खुश्बू’ से अवाम के कितने लोगों को महकाया
सीएम एक्सीलेंसी अवार्ड की चयन प्रक्रिया पर सवाल
देहरादून।न्यूज वेट ब्यूरो
अगर आपको यह मालूम पड़े कि ‘गुलाब’ से कहा जा रहा है कि वो खुद साबित करे कि वो ‘गुलाब’ है तो आपको शायद यकीन नहीं होगा। लेकिन ऐसा हो रहा है और उससे भी अहम बात यह है कि लोग खुद को ‘गुलाब’ साबित करने की कोशिश में जुटे हैं। इस बात का अंदाज किसी को नहीं है कि ‘गुलाब’ को खुद को साबित करने की कोई जरूरत नहीं होती। गुलाब जहां होता है, उसकी महक ही सब बता देती है।
दरअसल, ये तमाशा मुख्यमंत्री उत्कृष्टता एवं सुशासन अवार्ड के लिए चल रही चयन प्रक्रिया में दिखाई दे रहा है। सरकार हर साल सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को अपने दायित्वों के बेहतर निर्वहन के लिए यह अवार्ड देती है। इस बार एक चयन कमेटी का गठन किया गया है। इसमें पूर्व मुख्य सचिव एन. रविशंकर, पूर्व प्रमुख सचिव डीके कोटिया और पूर्व आईपीएस श्रीमती मट्टू शामिल हैं। इनमें से श्रीमती मट्टू उत्तराखंड के बारे में क्या जानती होंगी, क्योंकि वो यहां कभी रही ही नहीं। रविशंकर मुख्य सचिव रहते केदारनाथ आपदा घोटाले में अपनी ही सरकार को क्लीन चिट दे चुके हैं। कोटिया की निष्ठा पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता।
अब हो ये रहा है कि अगर किसी अधिकारी या कर्मचारी को ये अवार्ड चाहिए तो उसे इस कमेटी के सामने एक प्रजेंटेशन देना होगा कि सालभर में उसने क्या-क्या किया। सवाल यह है कि काम करने के लिए तो सरकार उन्हें वेतन दे ही रही है। और अगर अपने दायित्वों से इतर उसने कोई काम किया है तो उसे खुद बताने की क्या जरूरत है। उससे ऊपर के अफसरों को क्या ये नहीं मालूम कि उसका अधीनस्थ कितना एक्सट्रा आर्डिनरी काम कर रहा है। अगर सीनियर को ही नहीं मालूम को अपने प्रजेंटेशन में अधीनस्थ कुछ ही दिखा सकता है। शासन से बाहर की कमेटी को क्या पता होगा कि क्या सही है और क्या गलत।
इस चयन प्रक्रिया को लेकर शासन के गलियारों में चर्चा खासी तेज है। कहा जा रहा है कि कायदे से को सीनियर अफसर को खुद ही अपने स्तर से नाम रिकमंड करने चाहिए। यह भी किया जा सकता था कि सीधे अवाम से ही नाम मांगे जाते, क्योंकि अफसरों या कर्मचारियों की कार्य़शैली से ही आम अवाम प्रभावित होता है। चर्चा इस बात की भी हो रही है कि आखिर गुलाब (अधिकारी या कर्मचारी) को अपनी खुश्बू (कार्यशैली और परिणाम) क्यों साबित करनी पड़ रही है। ऐसे में तो वे लोग बहुत पीछे रह जाएंगे जो अपने सरकारी दायित्वों के निर्वहन का खुद ही बखान करने को तैयार नहीं है। ऐसे में इस अवार्ड के औचित्य और निष्पक्षता पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं।