एक्सक्लुसिव

आईएएस दीपक की मानें तो 2016 में लीक हुआ था पहला पेपर

परीक्षा रद, जांच हुई और न कोई एक्शन

हरिद्वार डीएम रहते भी पकड़ी थी सामूहिक नकल

हरीश और त्रिवेंद्र के सीएम के समय ये दोनों प्रकरण

उसी वक्त सख्त एक्शन होता तो माफिया आता पकड़ में

कुमाऊं कमिश्नर के इंटरव्यू पर कई सवाल हैं अनुत्तरित

देहरादून। भर्ती परीक्षाओं में घोटालों की खबरों के बीच कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत का सोशल मीडिया पर वायरल एक इंटरव्यू तमाम सवाल खड़े करने के साथ चौंका रहा है। यह इंटरव्यू चौंका इसलिए रहा है, क्योंकि एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नैनीताल में पेपर लीक होने की पुष्टि तो कर रहे हैं, पर यह नहीं बता रहे हैं कि छह साल पहले के इस मामले में कितनी गिरफ्तारियां हुईं और कितने लोगों को सजा मिली। अहम बात यह भी है कि ये दोनों ही पेपर लीक हरीश रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए थे। लेकिन न कोई जांच हुई और न कोई एक्शन।

आज तक के वेब पोर्टल उत्तराखंड तक में वायरल हो रहे एक शॉर्ट वीडियो में रावत कहते हैं, मुझे एक वाकया याद आ रहा है, बल्कि दो वाकये याद आ रहे हैं। बता रहे हैं कि 2016 में जब वो नैनीताल के जिलाधिकारी थे। रविवार के दिन उनके फोन पर अन नॉन (Un known) नंबर से व्हाट्सएप आया, जिसमें बताया गया कि जो पेपर होने जा रहा है, वो लीक हो गया है। यह पेपर कोआपरेटिव डिपार्टमेंट का या किसी ओर डिपार्टमेंट का था। जब मैंने पेपर देखा। पेपर शुरू होने में 15 मिनट ही बचे थे, क्योंकि दो बजे तो पेपर था। नजदीकी सेंटर पर जाकर शिकायत को वैरीफाई किया तो पूरा पेपर टैली हो गया। वो परीक्षा रद्द कर दी गई थी।

https://fb.watch/flQC0bSuXg/

सुने आईएएस दीपक रावत का बयान

इसी तरह, रावत ने हरिद्वार में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्हें एक परीक्षा में नकल की सूचना फोन पर मिलने की जानकारी दी है। बताते हैं, किसी ने उनका नंबर उनके ट्विटर एकाउंट से लिया था। इस परीक्षा को भी रद्द कराया गया था। कुमाऊं कमिश्नर जैसे अहम ओहदा संभालने वाले रावत ने दो गंभीर घटनाओं का जिक्र किया है। उन्होंने केवल यह बताया कि सूचनाएं मिलने पर उन्होंने कितनी सजगता से कार्य किया। पर, इन गंभीर मसलों से जुड़े कई सवालों के जवाब उनके इंटरव्यू में नहीं मिले।

ऐसे में सवाल यह उठ रहे हैं कि  नैनीताल में 2016 में लीक पेपर के मामले में क्या मुकदमा दर्ज कराया गया था और कितने लोगों की गिरफ्तारियां हुई थीं। डीएम रावत को व्हाट्सएप करने वाले व्यक्ति तक उक्त परीक्षा का लीक पेपर कहां से पहुंचा था। हरिद्वार में परीक्षा में नकल मामले में क्या हुआ।

इन सवालों की का जवाब किसी के पास नहीं है। यहां बता दें कि 2016 में हरीश रावत और 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री का ओहदा संभाल रहे थे। जाहिर है कि दोनों में किसी भी सरकार ने इन पेपर लीक और सामूहिक नकल के मामलों को गंभीरता से नहीं लिया। अगर उसी वक्त जांच और सख्त एक्शन ले लिया गया होता तो शायद नकल माफिया और उसे संरक्षण देने वाले सूबे के लाखों युवाओं के भविष्य से इस तरह से खिलवाड़ करने में सफल नहीं हो पाते।

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