इस बार दिग्गज हरक और ‘पापा’ के बेटे संजीव ही रहे हैं ‘अपवाद’
उत्तराखंडः बदलिए ‘दल’ पाइए राजयोग का ‘फल’!
कांग्रेस छोड़ने वालों के नसीब में आई ‘सत्ता’
भाजपा छोड़ने वालों में बचे महज ‘य़शपाल’
देहरादून। इस देवभूमि उत्तराखंड की सियासत भी अजब रंग दिखाती है। दलबदल करने वाले सत्ता सुख भोगते हैं तो मजबूरी में दल छोड़ने वाले सत्ता का वियोग। इस मामले में हरक और संजीव वियोग वालों की कैटेगरी में हैं तो बाकी सब सत्ता भोगने की स्थिति में हैं। अहम बात यह है कि कांग्रेस छोड़ने वाले सभी मौज में हैं तो भाजपा छोड़ने वालों में से कुछ के सामने तमाम दिक्कतें।
उत्तराखंड की पिछले छह सालों की सियासत ने तमाम रंग दिखाए हैं। गौर करेंगे तो पाएंगे कि दलबदल करने वालों के नसीब में राजयोग लिखा था। कांग्रेसी हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल, रेखा आर्य, यशपाल आर्य, सतपाल महाराज,उमेश शर्मा काऊ, चैंपियन समेत अन्य अन्य नेताओं ने 2016 में कांग्रेस को बाय बाय कर दिया। कुछ दिनों बात कांग्रेसी मूल के य़शपाल आर्य़ ने भी कांग्रेस छोड़ दी। 2017 के चुनाव में ये सभी जीते और कई तो पहली बार में ही कैबिनेट मंत्री बन गए।
फिर बारी आई 2022 के चुनाव की। इस बार मूल कांग्रेसी किशोर उपाध्याय, सरिता आर्या, रामसिंह कैडा समेत अन्य लोगों ने कांग्रेस को धता बताई और भाजपा का दामन थाम लिया। सालों से सत्ता की बाट जोह रहे नेता इस बार विधायक बन गए। पुराने कांग्रेसियों ने भाजपा नहीं छोड़ी और चुनाव जीत कर फिर से मंत्री बन गए।
भाजपा को छोड़ने वालों में यशपाल आर्य, उनके पुत्र संजीव आर्य और हरक सिंह रावत थे। य़शपाल ने तो छह माह पहले ही फैसला कर लिया था। वे खुद तो किसी तरह से चुनाव जीत गए पर उनके पुत्र संजीव हार गए। य़शपाल के लिए सुखद बात ये है कि कांग्रेस की मौजूदा बदहाली का उन्हें फायदा मिला और पांच साल तक फिर से सत्ता सुख भोगने के लिए उन्हें नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया है।
दलबदल और सत्ता में काबिज होने का मिथक इस बार सबसे ज्यादा हरक सिंह रावत पर भारी पड़ा। राज्य गठन के बाद से अब तक किसी न किसी न पद पर रहकर सत्ता का सुख भोगने वाले हरक इस बार विधायक भी बन पाए। पिछली बार दल बदल करके विधायक बने संजीव को भी देवभूमि की जनता ने इस बार पैदल कर दिया है।
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