हनोल के महासू देवता मंदिर समिति के निर्णय पर लोक पंचायत को आपत्ति
जौनसार के खतों का प्रतिनिधित्व खत्म होने से भारी आक्रोश

जौनसार के खतों का प्रतिनिधित्व खत्म होने से भारी आक्रोश
सोशल मीडिया में भी जौनसार के लोग जता रहे अपना रोष
देहरादून। श्री महासू देवता मंदिर प्रबंधन समिति हनोल की बैठक में पारित निर्णय पर सामाजिक संगठन लोक पंचायत ने विरोध जाहिर किया है। लोक पंचायत सहित क्षेत्र के अन्य लोगों ने चार सितंबर को मंदिर समिति की ओर से जारी आदेश पर आपत्ति जताई है। लोक पंचायत ने मंदिर समिति के विस्तारीकरण में जौनसार बावर की सभी 39 खतों को सम्मिलित करने की मांग रखी है। उनकी ओर से कहा गया है कि मंदिर समिति को बावर क्षेत्र की 11 खतों व बंगाण क्षेत्र की तीन पट्टी तक सीमित नहीं रखा जा सकता। मंदिर समिति में एक लाख रुपये आजीवन सदस्यता शुल्क निर्धारित करना भी उचित नहीं है। लोक पंचायत ने समिति से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।
पंचायत की ओर से जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। इसमें कहा कि महासू देवता मंदिर हनोल लाखों श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था का प्रतीक है। पूरे जौनसार बावर, बंगाण क्षेत्र, यमुना घाटी और हिमाचल के सिरमौर व शिमला में देवता के प्रति गहरी आस्था और मान्यता है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाल ही में श्री महासू देवता (देवलाडी) मंदिर प्रबंधन समिति हनोल की बैठक में पारित निर्णय की सूचना सार्वजनिक होने से जौनसार के लोगों में आक्रोश है। महासू मंदिर हनोल में पौराणिक काल से स्थानीय हक हकूकधारी बजीर, सदर स्याणा, पुजारी, राजगुरु, पुरोहित, ठाणी, भंडारी, बाजगी व पिशनारे समेत नौ कारिंदे पीढ़ी दर पीढ़ी देवता की परंपरागत व्यवस्था से जुड़े हैं। समिति के विस्तारीकरण में जौनसार क्षेत्र की 28 खतों की उपेक्षा उचित नहीं है। इसलिए सभी खतों से एक-एक व्यक्ति को सदस्य बनाया जाए। उन्होंने तय आजीवन सदस्यता शुल्क को निरस्त कर न्यूनतम शुल्क 1100 रुपये और तीन वर्ष के लिए सामान्य सदस्यता शुल्क 100 रुपये निर्धारित करने की मांग की है। इस अवसर पर लोक पंचायत के सदस्य सतपाल चौहान, प्रदीप वर्मा, नितिन तोमर, अतुल शर्मा, गंभीर सिंह, सत्येंद्र आदि मौजूद रहे।
इधर समाजसेवी आनंद चौहान ने सोशल मीडिया में लिखा है कि जौनसार का हनोल मन्दिर मै कोई अधिकार नही है दिनांक 4-9-2025 को उपजिला अधिकारी चकराता/ अध्यक्ष श्री महासू देवता (देवलाडी) मंदिर प्रबंधन समिति हनोल के हस्ताक्षर से जारी पत्र के माध्यम से ज्ञात हुआ कि मंदिर समिति की प्रबंध कार्यकारिणी ने यह निर्णय लिया है कि मंदिर समिति का विस्तार किया जाए। मंदिर समिति में सिर्फ बावर क्षेत्र की 11 खतों और उत्तरकाशी जिले के बंगाण क्षेत्र की तीन पट्टियां मिलाकर कुल 14 सदस्य बनाए जा सकते हैं। एसडीएम और मंदिर समिति के इस निर्णय से महासू देवता के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था को गहरी ठेस पहुंची है। श्रद्धालु के नाते मंदिर समिति से मेरा एक सवाल है क्या महासू देवता सिर्फ 11 खत व तीन पट्टी के देवता हैं। क्या देवता को क्षेत्र की सीमा में बांधना उचित है। महासू देवता मंदिर हनोल टोंस, पावर व यमुना वैली से जुड़े सम्पूर्ण जौनसार-बावर की 39 खतों, बंगाण क्षेत्र, फतह पर्वत, रंवाई-जौनपुर, यमुना घाटी, हिमाचल के सिरमौर व शिमला जिले के समस्त क्षेत्रवासियों के कुल आराध्य देवता हैं। महासू मंदिर हनोल को मास्टर प्लान के रूप में विकसित करने से देवता की ख्याति देश विदेश में बढ़ेगी। मंदिर की पौराणिक व्यवस्था के अनुसार समिति में आदिकाल से लेकर अब तक देवता की पूजा अर्चना एवं सेवा करते आ रहे स्थानीय हक हकूकधारियों एवं कारिंदों में शांठीबिल व पांशीबिल के बजीर, ग्राम चातरा, पुरटाड, निनूस तीन गांवों के पुजारी, मैंद्रथ के पुरोहित, हनोल मंदिर के राजगुरु, शांठी-पांशी के ठाणी-भंडारी, डडवारी-बाजगी, पिशनारे और बावर खत के सदर स्याणा समेत कुल नौ हक हकूकधारियों के अलावा प्रशासनिक संरक्षण को एसडीएम व तहसीलदार को समिति में रखा जाना चाहिए। पीढ़ियों से मंदिर की परम्परागत व्यवस्था से जुड़े स्थानीय हक-हकूकधारियों व कारिंदों के अलावा किसी अन्य को मंदिर प्रबंधन समिति में नहीं रखा जाना चाहिए। देवता के इन कारिंदों के हक एवं अधिकार मंदिर में निहित है। इसके अतिरिक्त अन्य श्रद्धालु सेवा भाव से मंदिर समिति के विकास कार्य में अपना सहयोग प्रदान कर सकते हैं। अगर मंदिर समिति का विस्तार करना है तो देवता की आस्था से जुड़े समस्त क्षेत्र को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। मंदिर समिति में इस तरह की राजनीति भविष्य के लिए उचित नहीं है। इससे लोगों में विरोधाभास उत्पन्न होगा। देवता की जितनी मान्यता बावर क्षेत्र की 11 खतों व बंगाण क्षेत्र की तीन पट्टियों में है उतनी ही मान्यता जौनसार की 28 खतों एवं अन्य जगह है। मंदिर समिति और एसडीएम का यह निर्णय हमारी समझ से परे है। देवता के मंदिर को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। मंदिर समिति को स्थानीय लोक मान्यता एवं परंपरा के अनुरूप उचित निर्णय लेने चाहिए। समिति के विस्तारीकरण में इस तरह की दलगत राजनीति एवं छोटी सोच किसी रूप में स्वीकार नहीं है। इसका व्यापक स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए।