उत्तराखंड में उद्यानिकी: अतीत, वर्तमान और भविष्य…

उत्तराखंड में उद्यानिकी: अतीत, वर्तमान और भविष्य
उत्तराखंड की जलवायु और भौगोलिक स्थितियां औधोनिकी (Horticulture) के लिए बहुत अनुकूल हैं। यहाँ पहाड़ों में सेब, नाशपाती, अखरोट, और कीवी उगाए जाते हैं, तो मैदानी क्षेत्रों में आम, लीची, अमरूद और केला की खेती होती है। इसके अलावा, मसाले, जड़ी-बूटियां और औषधीय पौधे भी बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं।
प्राचीन काल में पहाड़ी लोग पारंपरिक खेती के साथ-साथ फल और जड़ी-बूटियों की खेती करते थे।मसाले और औषधीय पौधों का उपयोग घरेलू इलाज और व्यापार में होता था।
ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों ने उत्तराखंड में सेब, चाय और मसालों की खेती को बढ़ावा दिया। उनके द्वारा गढ़वाल व कुमाऊँ क्षेत्र में चाय बागान स्थापित किए गए।
उत्तराखंड बनने के बाद राज्य सरकार ने उद्यानिकी को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं चलाईं। जैविक खेती और फलों के निर्यात को प्रोत्सान योजनाओं का प्रचार एवं किसानों को उन्नत तकनीक और प्रशिक्षण दिए जाने दावे किए गए जो धरातल पर बहुत ज़्यादा प्रभावी नज़र नही आये ।
बात अगर वर्तमान स्थिति की करें तो उत्तराखंड में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों का दायरा बड़ा कर आजीवका को बड़ा पलायन को रोका जा सकता है । पहाड़ी क्षेत्रों में सेब, नाशपाती, आड़ू, प्लम, अखरोट, कीवी की उच्चगुणवत्ता की प्रजातिओं की प्लांटेशन की अपार संभावनाएँ है । वही दूसरी तरफ़ राज्य के मैदानी क्षेत्रों में मैदानी आम, लीची, अमरूद, केला, पपीता का रकवा बढ़ाया जा सकता है ।
राज्य की कुल खपत की सब्ज़ियों का अधिकतर प्रतिशत पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से आता है विभाग को चाहिए कि आलू, टमाटर, मटर, गोभी, शिमला मिर्च, गाजर, मूली आदि की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करे ।वैश्विक स्तर पर जैविक सब्जियों की माँग बढ़ रही है।
मसाले और औषधीय पौधे हल्दी, अदरक, तेजपत्ता, दालचीनी एलोवेरा, अश्वगंधा, तुलसी, गिलोय जैसी जड़ी-बूटियाँ। इन सबके लिए किसानों को प्रशिक्षण की ज़रूरत होगी जिसका जिम्मा विभाग को उठाना चाहिए ।
भविष्य की संभावनाएं जैविक खेती और निर्यात, जैसा कि हम जानते है कि जैविक उत्पादों की मांग दुनिया भर में बढ़ रही है।उत्तराखंड के किसान जैविक खेती अपनाकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
नई तकनीकों जैसे ग्रीनहाउस और पॉलीहाउस से अधिक उपज ली जा सकती है। ड्रिप सिंचाई से जल बचाया जा सकता है।
वैल्यू एडिशन के रूप में फ़्रूट पोसेसिंग यूनिटो की स्थापना कर सेब, नाशपाती और कीवी से जूस, जैम और ड्राई फ्रूट्स बनाए जा सकते हैं।औषधीय पौधों से हर्बल उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं।
एग्रो-टूरिज्म योजना के माध्यम से आय के अधिक संसाधन विकसित किए जा सकते हैं जैसे फ्रूट प्लकिंग” (फल तोड़ने का अनुभव) और “फार्म स्टे” (खेतों में ठहरने) जैसी गतिविधियों का आनंद लेने के लिए पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता हैं।
जलवायु परिवर्तन वर्तमान में प्रमुख चुनौती है ।अनियमित बारिश और बर्फबारी से फसलें प्रभावित होती हैं। इसके लिए रेनवाटर हार्वेष्टिंग और स्रोत संवर्धन के लिये किसानों को सरकार द्वारा वित्तीय अनुदान दिया जाना चाहिए । बाजार में किसानों को उचित दाम नहीं मिल पाते इसलिए सरकार को ख़रीद योजना एवं कोल्ड स्टोर का निर्माण हर ब्लॉक में करना चाहिए ! जिसका लाभ उठा किसान बाजार में सही मूल्य मिलने पर अधिक दाम पर अपनी फसल बेच सके ।
संभावनाएँ अपार है और समाधान भी , बस ज़रूरत है मजबूत इच्छाशक्ति की , सरकार कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिट्स बनाए।किसानों के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाए जाएं ताकि वे सीधे ग्राहकों को बेच सकें। नई तकनीकों को अपनाकर उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाई जाए।
उत्तराखंड में औधोनिकी किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर है। यदि जैविक खेती, आधुनिक तकनीक और प्रोसेसिंग उद्योग को बढ़ावा दिया जाए, तो यह राज्य भारत का अग्रणी औधोनिकी केंद्र बन सकता है।