पिता की हार का ‘बदला’ ले पाएंगी बेटियां ?

एक बेटा भी 20 साल पुरानी हार का हिसाब लेने को तैयार
भाजपा और कांग्रेस दोनों में अजब मुकाबला
देहरादून। उत्तराखंड विस के इस चुनाव में तीन मामले ऐसे हैं, जिनमें पिता की हार का बदला लेने के लिए बेटा और बेटियां सियासी समर में हैं। अब यह तो आने वाले समय में ही तय होगा कि इस मामले में बेटियां आगे रहती हैं या बेटा। या फिर इन्हें भी अपने पिता की तरह हार का सामना करना पड़ सकता है।
पहले बात करते हैं कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत की। 2017 के चुनाव में भाजपा के यतीश्वारनंद ने हरदा को हरिद्वार ग्रामीण सीट से हराया था। इस बार हरदा की बेटी अनुपमा कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के यतीश्वरानंद के सामने हैं। अब यह 10 मार्च को ही साफ होगा कि अनुपमा अपने पिता की हार का हिसाब बराबर कर पातीं हैं या नहीं।
इसी तरह कोटद्वार सीट से भाजपा ने ऋतु खंडूड़ी को अपना प्रत्याशी बनाया है। इसी कोटद्वार सीट से 2012 में ऋतु के पिता मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। वे उस वक्त मुख्यमंत्री थे। लेकिन कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी के मुकाबले उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इस बार भाजपा ने यमकेश्वर सीट से विधायक और खंडूड़ी की पुत्री ऋतु को कांग्रेस प्रत्याशी नेगी के सामने खड़ा किया है। ऐसे में ऋतु के पास दस साल पहले हुई पिता की हार का बदला लेने का मौका है।
काशीपुर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी नरेंद्र सिंह के पास अपने पिता की बीस साल पहले महज 195 वोटों से हुई हार का बदला लेने का मौका है। 2002 के चुनाव में भाजपा-अकाली गठबंधन के प्रत्याशी हरभजन सिंह चीमा ने कांग्रेस प्रत्याशी केसी सिंह बाबा को हराया था। इस बार भाजपा ने विधायक चीमा के पुत्र त्रिलोक को प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने बाबा के पुत्र नरेंद्र सिंह पर दांव खेला है। 2002 में दोनों के पिता आमने-सामने थे तो इस बार दोनों के पुत्र सियासी समर में हैं।