भारत रत्न पंतजी का काशीपुर से रहा करीबी नाता
उनकी वजह से ही काशीपुर को गोविंदगढ़ भी कहते थे अंग्रेज अफसर
राजनीतिक कैरियर की शुरुआत भी की इसी शहर से
10 सितंबर को मनाया जाएगा 133 वां जन्मदिवस
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश शर्मा की कलम से
काशीपुर। भारतरत्न पं. गोविन्द बल्लभ पंत देश के पूर्व गृहमंत्री तथा देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री करीब आठ साल तक रहे। देश की आजादी से पूर्व संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री भी रहे। पंत जी की देश के प्रति की गई उनकी उत्कृष्ट एवं सराहनीय सेवाओं के लिए उन्हें 1957 में भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया था। पंत जी का काशीपुर से बेहद गहरा नाता रहा है। पंत जी की वजह से ही अंग्रेजी हुकूमत के अफसर काशीपुर को गोविंद गढ़ भी कहते थे।
भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त जी का काशीपुर ;उत्तराखण्डद्ध से बहुत करीब का नाता रहा है। काशीपुर में आज भी उनकी यादें लोगों के दिलो-दिमाग में हैं। शहर तमाम संस्थाओं की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आलम यह था कि ‘‘ब्रिटिश हकूमत’’ के नौकरशाह काशीपुर को पंतजी का ‘‘गोविन्द गढ़’’ नाम से पुकारते थे। पंतजी काशीपुर बार एसोसिएशन के प्रथम अध्यक्ष (1912 से 1920 तक करीब आठ साल रहे) थे। उनके नाम की वजह से आज काशीपुर की बार कुमाऊं की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण ‘‘बार एसोसिएशन’’ मानी जाती है। उदयराज हिन्दू इंटर कालेज की स्थापना में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा था। वे कालेज के भी करीब 20 वर्ष तक प्रथम संस्थापक मंत्री रहे। सन् 1914 में उन्होंने ‘हिन्दी प्रेम सभा’’ की स्थापना ‘‘नागरी प्रचारिणी सभा’’ के नाम से ‘नजकरी’ में नमक वालों में घेर में की थी।
पंत जी का काशीपुर में मोहल्ला खत्रियान निवासी कपड़ा व्यवसायी हरकिशन दास मेहरोत्रा जी से बहुत करीब का नाता था। मेहरोत्रा जी के पौत्र दिलीप मेहरोत्रा भारत रत्न पं. गोविन्द बल्लभ पंत स्मारक समिति के संयोजक हैं। हर साल स्टेशन रोड स्थित पंत पार्क में 10 सितंबर को उनकी दिवस मनाया जाता है। मेहरोत्रा ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण इस बार उनका 133 वां जन्म दिवस सादगी पूर्ण तरीके से मनाया जायेगा। पंत पार्क की स्थापना 1970-71 में तत्कालीन चैयरमेन महेश चन्द्र गुप्ता के कार्यकाल में की गई थी।
पुरानी यादों की चर्चा करते हैं लोग
शहर निवासी स्वामी दिलीप मेहरोत्रा बताते हैं कि पंत जी काशीपुर में सबसे पहले नजकरी में नमक वालों के यहां आकर रुके थे। 1913 में वे मोहल्ला खालसा में शक्ति पंत जी के मकान के पास रहे थे। पंत जी के पिता मनोरथ पंत काशीपुर तहसील में कुर्क अमीन के पद पर तैनात रहे थे। मेहरोत्रा बताते हैं कि उनके दादा हरकिशन दास मेहरोत्रा से उनकी करीबी मित्रता थी। पंत जी की काशीपुर नगर पालिका के प्रथम चैयरमेन रहे चौबे राजकुमार जी से भी घनिष्ठ मित्रता थी। वर्ष 1916 में पंत जी ने करीब 30 साल की उम्र में मेरे दादा जी और चौबे राजकुमार जी के दबाव में ही पत्नि के निधन के बाद काशीपुर में तीसरी शादी तारादत्त पाण्डे जी की पुत्री कलादेवी से की थी। पंत जी को ‘‘मुरादाबादी तम्बाकू’’ बहुत पसंद थी। वह खाने के बाद इसका सेवन जरूर करते थे। पंत जी को सादा भोजन पसंद था। उन्हें खादी का ढीला-ढाला कुर्ता पजामा बंद गले का कोट तथा गांधी टोपी बहुत पसंद थी। पंत जी ने काशीपुर की कोर्ट में भी वकालत की थी। वे घर से कोर्ट तक पैदल आते-जाते थे। उनका ये मानना था कि पैदल आने-जाने से काशीपुर के सभी लोगों से मेरा मिलना-जुलना हो जाता है तथा उनकी मुझे कुशल क्षेम भी मुझे मिल जाती है। डा. रामशरण सारस्वत द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘काशीपुर का इतिहास’’ का विमोचन वर्ष 1987 में पंत जी के पुत्र केसी पंत ने किया था।