मानवाधिकार की तस्वीर पर लालफीताशाही की कुंडली
- पहले तो आयोग ने सात साल तक तैयार नहीं हालात पर कोई भी रिपोर्ट
- अब अफसरों ने दबा रखी है एक साल ये रिपोर्ट्स
देहरादून। न्यूज वेट ब्यूरो
राज्य में मानवाधिकार के बारे में सरकारी दावें भले ही कुछ किए जा रहे हों पर आयोग और अफसरशाही का कार्यशैली इस बात का इशारा कर रही है कि सब कुछ ठीक नहीं है। हालात ये हैं कि सालाना तैयार होने वाली रिपोर्ट को आयोग ने सात साल बाद तैयार किया और अफसर इन रिपोर्ट पर कुंडली मार कर बैठे हैं। इसका खुलासा सूचना अधिकार अधिनियम के तहत ली गई जानकारी से हुआ है।
नागरिकों की मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए हर राज्य में एक आयोग बनाया जाता है। यह आयोग हर साल अपनी एक रिपोर्ट सरकार को देता है। इसमें बताया जाता है कि सालभर में कितने मामले आए और उनमें क्या किया गया। आयोग इस रिपोर्ट में यह भी बताता है कि मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए और क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
इस रिपोर्ट में आयोग का संस्तुतियों पर एक्शन के बाद सरकार इसे विधानसभा में पेश करती है। इसके बाद ही किसी भी राज्य में मानवाधिकार संरक्षण की असली तस्वीर सामने आती है।
अब बात उत्तराखंड के मौजूदा हालात की। वरिष्ठ अधिवक्ता और सूचना अधिकार में कई इनाम पा चुके नदीम उद्दीन ने इस बारे में पहले तो आयोग से सूचना मांगी। इस पर आयोग की ओर से बताया गया कि 2012 से 2018 तक की रिपोर्ट मिली है। लेकिन पहले इसे विस में रखा जाना है। लिहाजा इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
ऐसे में सवाल यह है कि आयोग ने सालाना रिपोर्ट देने की अपनी जिम्मेदारी पर अमल क्यों नहीं किया। फिर आयोग का सात सालों की रिपोर्ट पर अफसर क्यों कुडंली मारकर बैठे हैं। ये इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि उत्तराखंड में मानवाधिकार संरक्षण की स्थिति खराब है। गर ऐसा न होता तो पहले सात साल तक आयोग और अब एक साल से अफसर क्यों नहीं बता रहे कि राज्य के नागरिकों के मानवाधिकार किस हद तक सुरक्षित हैं।