ब्यूरोक्रेसी

आदेश दर आदेश तक ही सीमित बड़े बाबू !

आखिर अमल की जमीनी सच्चाई क्यों नहीं जांचते आला अफसर

मंत्री ने दिखाया पिछली तैयारियों का आइना

हाईकोर्ट भी अफसरों की कार्यशैली से नाराज

सीएम खुद ले रहे फील्ड में हालात का जायजा

देहरादून। कोविड महामारी की भयावयता से निपटने को ‘बड़े बाबू’ आदेश दर आदेश निकाल रहे हैं। मानो तमाम नौकरशाही निरन्तर चिंतन मनन और व्यवस्थाएं सुचारू करने के लिए लगी पड़ी हो। लेकिन जमीनी धरातल पर आदेशों के बावजूद ऐसा कुछ नहीं हो पाया कि आवाम की परेशानियां कम हों। अगर पिछले साल के आदेशों पर अमल हुआ होता तो अस्पतालों में वैंटिलेटर पैकिंग में न रहते और कोटद्वार में ऑक्सीजन प्लांट कब का चालू हो गया होता। यही वजह है कि हाईकोर्ट नाराज है और एक मंत्री ने तो पिछले आदेशों की तैयारियों पर ही सवाल उठा दिया है।

आदेशों की बानगी के बाद नौकरशाही ने उन की उपयोगिता को भी सिद्ध करने की भरपूर कोशिश की। कोविड कर्फ़्यू के आदेशों पर कहा गया कि इस से संक्रमण दर में कमी आई। जबकि संक्रमित लोगों की संख्या कर्फ़्यू के दौरान दूसरे हफ्ते में सबसे ज्यादा नौ हजार का आंकड़ा पार कर गई। आज भी संक्रमण बदस्तूर जारी है जबकि इस बीच टेस्टिंग की संख्या को लेकर सवाल उठते रहे हैं। बड़े बाबूओं की इस कार्यशैली पर हाईकोर्ट ने नाराजगी दिखाई तो एक मंत्री गणेश जोशी ने पिछले साल के आदेशों पर होने वाली तैयारियों पर ही सवाल खड़े कर दिए।

दरअसल, सवाल आदेशों पर अमल और उससे होने वाली तैयारियों का है। इस ओर शायद नीति नियंताओं का ध्यान नहीं गया। उपकरणों और संसाधनों का रोना रोने वाले सिस्टम की बानगी यह भी रही कि कई महीनों पूर्व केंद्र सरकार से मिले कई स्वास्थ्य उपकरणों की पैकिंग तक नहीं खोली जा सकी। पीएम केयर फंड से कोटद्वार में लगने वाले आक्सीजन प्लांट की ओर न तो पहले के स्वास्थ्य सचिव ने ध्यान दिया और न उनके बाद वालों ने। आज कर्फ़्यू का कड़ाई से पालन करने के आदेशों के बाद भी अपनी मजबूरियों के चलते घर से बाहर निकल रहे लोगों को जिम्मेदारियों का एहसास दिलाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन सिस्टम में मौजूद उन लोगों को कब अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराया जाएगा जिनके काँधों पर इस सूबे के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी थी और है। आखिर ये लोग अपने आदेशों पर अमल की जमीनी हकीकत जानने के लिए क्यों नहीं फील्ड में जा रहे हैं। आलम यह है कि रायपुर में बने कोविड अस्पताल के लिए विधायक उमेश शर्मा काऊ ने उपकरण तो मंगा दिए। लेकिन अफसरों ने इसे चालू करने की दिशा में क्या प्रयास किए, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सीएम तीरथ सिंह रावत खुद दो बार यहां का दौरा कर चुके हैं। लेकिन किसी बड़े बाबू ने जमीनी हकीकत को देखना गंवारा नहीं किया।

कोविड के चलते अभी भी स्थिति भयावह बताई जा रही है शहरों के बाद संक्रमण तेजी से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पांव पसार रहा है। गांवों में लोगों के सर्दी, खांसी, बुखार से पीड़ित होने की सूचनाएं मिल रही हैं। प्रदेश की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव से ग्रस्त पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में हालात बिगड़े तो इन आदेशों से कुछ नहीं हो पाएगा। जब तक कि धरातल पर व्यावहारिक व्यवस्थाएं  न की जाएं।

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