हरदा के ‘सियासी जख्मों’ पर ‘मरहम’ लगा रहे विधायक
सड़क पर आ चुकी है उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस पर वर्चस्व की जंग
देहरादून। न्यूज वेट ब्यूरो
कथित तौर पर संगठन से मिली उपेक्षा के जख्मों से कांग्रेसी दिग्गज खासे आहत हैं। इन सियासी जख्मों पर हरदा गुट के विधायकों ने सहानुभूति की मरहम लगाना शुरू कर दिया है। इन विधायकों ने हरदा के इन जख्मों के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को सीधे तौर पर जिम्मेदार बता दिया है। आलम यह है कि हरीश गुट ने विधायकों ने बुधवार को प्रदेश संगठन के साथ राजभवन जाना गंवारा नहीं किया।
2017 में मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत दो विस सीटों से चुनाव हार गए थे। उस वक्त कांग्रेसी खेमे में कहा जाने लगा था कि हरदा का सियासी करियर खत्म हो गया है। इसी बीच प्रीतम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंप दी गई। लेकिन सालों तक कांग्रेसी दिग्गज एनडी तिवारी से सिय़ासी अदावत रखने वाले हरदा अचानक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बन गए। उन्हें असम का प्रभारी भी बनाया गया। लेकिन हरीश रावत पुराने अंदाज में उत्तराखंड में सक्रिय रहे। प्रदेश कांग्रेस से अलग वे विभिन्न दावतों के माध्यम से सुर्खियां बटोरते रहे। धीरे-धीरे प्रदेश कांग्रेस और हरदा के बीच सियासी दूरियां बढ़तीं रहीं।
इसी बीच निकाय चुनाव भी हुए। संगठन की ओर से हरदा को सीधे तौर पर कोई काम नहीं दिया गया। लेकिन वे सक्रिय जरूर रहे। हल्द्वानी नगर निगम में सुमित ह्रदयेश की हार के बाद तो नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश और हरदा के बीच दूरियां बढ़ गईं। इसके बाद प्रीतम और इंदिरा अपने अंदाज में कांग्रेस संगठन चलाने लगे। कई मौकों संगठन के कार्यक्रमों में हरदा उत्तराखंड में होने के बाद भी नजर नहीं आए।
पिछले दिनों हरदा ने सोशल मीडिया में सार्वजनिक जीवन से सन्यास की अपनी मंशा का इजहार किया तो उनके खेमे के विधायक सक्रिय हो गए। तीन-चार विधायकों ने प्रदेश कांग्रेस पर हरदा की उपेक्षा के आरोप लगाए। एक विधायक ने तो यहां तक कह दिया कि अगर यही हालात रहे तो 2022 के चुनाव में कांग्रेस विधायकों की संख्या एक पर ही सिमट जाएगी। हालात ये हैं कि प्रदेश कांग्रेस और विधायक दो धड़ों में बंटे हैं। खुलकर बयानबाजी की जा रही है। हरदा गुट के विधायकों ने तो बुधवार तो कांग्रेस के कार्यक्रम के तहत राजभवन जाने तक से तौबा कर ली।
इस समय सकून में भाजपा सरकार
प्रचंड बहुमत की वजह से सरकार को पहले ही कांग्रेस से किसी तरह का खौफ नहीं था। लेकिन इस समय कांग्रेस में चल रही धड़ेबाजी से सरकार खासा सकून महसूस कर रही है। विपक्ष के नाते कांग्रेस के पास सरकार की घेराबंदी के तमाम मौके हैं। लेकिन ये कांग्रेसी पहले आपस में ही एक-दूसरे को निपटाने में लगे हैं। अगर हालात यही रहे तो 2022 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से भाजपा को एक तरह से वाकओवर ही दिया जाएगा।
हमेशा ही चर्चा में रहते हैं हरदा
हरीश रावत हमेशा से ही चर्चा में रहते हैं। सूबे की पहली निर्वाचित सरकार के मुखिया रहे एनडी तिवारी पांच साल तक हरदा की कार्यप्रणाली के चलते चिंतित रहे। इसके बाद 2012 में विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने तो हरदा ने पहले तो अपने चहेतों को अहम ओहदे दिलवाए। इसके बाद भी तमाम मसलों पर बहुगुणा को खत लिखकर उन्हें सार्वजनिक करते रहे। पहली बात हरदा खुद को असहज सा महसूस कर रहे हैं।