आप तो मौज में हो नेताजी और वो खा रहे सड़कों पर धक्के 

विस भर्तीः आखिर क्या कसूर है युवाओं का
एक ही तरह भर्ती आधे लोग अभी भी नौकरी में
कोटिया कमेटी की आधी रिपोर्ट पर लिया एक्शन
अब बड़ों पर एक्शन के बगैर थमेगी नहीं ये रार
देहरादून। विधानसभा भर्ती घोटाले का भी अजब खेल है। नौकरी देने वाले नेता अभी भी मौज कर कर रहे हैं और नौकरी पाने वाले सड़क पर धक्के खा रहे हैं। अहम बात यह है कि जांच को बनी कोटिया कमेटी की आधी रिपोर्ट पर ही एक्शन लिया गया है। अब यह साफ हो चला है कि जब तक गलत तरीके से नौकरी देने वाले नेताओं पर एक्शन नहीं होता है, ये रार थमने वाली नहीं है।
विस में मनमानी भर्ती का मामला तूल पकड़ा तो स्पीकर ऋतु खंडूड़ी ने आधे कार्मिकों को नौकरी से बाहर कर दिया। पर आधे अभी भी नौकरी कर रहे हैं। स्पीकर ने कोटिया कमेटी की रिपोर्ट को भी आधा अधूरा ही लागू किया है। नतीजा यह है कि बर्खास्त किए गए ढाई सौ से ज्यादा दो माह से सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। कोई यह भी बताने को तैयार नहीं है कि जब कोटिया कमेटी से 2000 के बाद की सभी नियुक्तियों को अवैध माना है तो आधे युवाओं को ही सड़क पर आने को क्यों मजबूर किया गया।
इस मामले में एक अहम पहलू यह भी है कि बर्खास्त कर्मियों को नौकरी देने वाला सियासी नेता आज भी मौज में हैं। पूर्व स्पीकर प्रेम चंद अग्रवाल इस समय काबीना मंत्री के ओहदे पर आसीन हैं। उन पर न तो कमेटी ने कोई सवाल उठाया और न ही प्रेम ने खुद ही नैतिकता दिखाते हुए मंत्री पद और विधायकी से इस्तीफा दिया। इसी तरह से पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल भी सरकारी खजाने से प्रति माह पेंशन ले रहे हैं और कांग्रेस के दिग्गज हरीश रावत उनकी पैरवी करते घूम रहे हैं।
ऐसे में सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या नौकरी देने वाले नेताओं ने कोई गुनाह नहीं किया और क्या उन्हें भी सजा नहीं मिलनी चाहिए। ये नेता अपने पद का दुरुपयोग करके नौकरियां बांट रहे थे। अब युवाओं को ये पता नहीं था कि वे गलत भर्तियां कर रहे हैं। इसके बाद भी केवल युवाओं को बर्खास्त करना और नेताओं को मौज करने की छूट देने पर सवालात उठना लाजिमी ही है। जाहिर है कि जब तक इन नेताओं पर एक्शन नहीं होता तब तक इन युवाओं की बर्खास्ती को भी जायज नहीं माना जाना चाहिए।