…तो मंत्रियों को ‘आज्ञाकारी सचिव’ की दरकार !
‘नियंत्रण’ को चाहते रहे हैं सीआर लिखने का अधिकार
इसी वजह से लंबित है ब्यूरोक्रेसी में फेरबदल
देहरादून। सरकार के मुखिया का चेहरा बदलने के साथ ही सहयोगी मंत्रियों के तस्वीर भी सामने आ चुकी है। लेकिन काम करने वाली अफसरशाही की नई शक्ल अभी सामने आना बाकी है। बताया जा रहा कि सीएम तीरथ सिंह रावत के सहयोगी अपने विभाग का सचिव अपनी अपनी मर्जी का चाहते हैं। त्रिवेंद्र सरकार के समय में तकरार की खबरों के बाद मंत्रियों की मांग थी कि सचिवों की सीआर लिखने का अधिकार उन्हें दिया जाय़। ताकि हुक्म उदूली करने वालों अफसरों पर नकेल कसी जा सके।
हालात जो भी रहे हों पर सरकार का मुखिया बदल चुका है। सीएम तीरथ से सात पुराने मंत्रियों पर भरोसा जताया है तो चार नए चेहरे भी सामने हैं। मंत्रियों को विभाग भी आवंटित किए जा चुके हैं। लेकिन अभी तक केवल सीएम तीरथ ही बैटिंग कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि तीरथ के सहयोगी मंत्री चाहते हैं कि उनके विभागों का सचिव उनकी मर्जी के अऩुसार दिया जाए। इसके पीछे त्रिवेंद्र सरकार के समय में मंत्रियों और सचिवों के बीच मची खींचतान का उदाहरण दिया जा रहा है। उस समय कम से कम चार से पांच मंत्री अपने सचिवों की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं थे। सचिव विभागीय मंत्री को विश्वास में लिए बगैर ही सीधे तत्कालीन सीएम ने पत्रावली पर अनुमोदन लेकर मनमाने आदेश जारी करते रहे थे।
विवाद ज्यादा तूल पकड़ा तो मंत्रियों ने कहा कि सचिवों की सीआर लिखने का अधिकार उन्हें दिया जाए न कि ये अधिकार सीएम के पास ही रहे। ऐसा होने पर अफसर अपने विभागीय मंत्री का राय और आदेश पर तव्वजो देने को बाध्य होंगे। लेकिन उस समय इस पर कोई फैसला नहीं हो सका। अब बदले निजाम में मंत्री चाहते हैं कि इस बार सचिव ऐसा दिया जाए जो उनकी आदेश पर अमल करे। मंत्रियों का तर्क है कि जनता और पार्टी हाईकमान उऩके कामों की समीक्षा करता है न कि सचिवों की। अच्छे या खराब फरफार्मेंस का नतीजा तो मंत्रियों को ही भुगतना होता है। ऐसे में उनका सचिव ऐसा हो, जो उनके आदेश का पालन करे और उनके अऩुसार ही काम करे। शायद यही वजह है कि सरकार अभी तक ब्यूरोक्रेसी में कोई तब्दीली नहीं कर सकी है। महज एक पीसीएस अफसर और सूचना विभाग के महानिदेशक मेहरबान सिंह बिष्ट को ही बदलकर उनकी जगह आईएएस अफसर रणवीर सिंह चौहान को लाया गया है। माना जा रहा है कि सीएम तीरथ सिंह रावत सचिवालय से लेकर जिलों पर अफसरों को ताश के पत्तों की तरह फेंट सकते हैं। पुरानी सरकार के चर्चित और कथित ताकतवर अफसरों के कद में भारी कटौती की जा सकती है।