कोरोनाःबड़े संकट की ओर तो नहीं उत्तराखंड
नहीं पता चल रही पौने तीन सौ लोगों में संक्रमण की वजह
न विदेश से लौट, न जमाती और न ही हैं प्रवासी
21 मई के बाद से बढ़े इस तरह के संक्रमित लोग
अब कम्युनिटी स्प्रैड का बढ़ता जा रहा है खतरा
न्यूज वेट ब्यूरो
देहरादून। कोरोना से जंग के दौरान आंकड़ों का अध्ययन करने से एक चौंकाने वाली तसवीर ये सामने आ रही है कि तमाम ऐसे लोग भी संक्रमित सामने आ रहें हैं, जिनके बारे में यह पता नहीं चल पा रहा है कि ये लोग आखिरकार संक्रमण की चपेट में कैसे आए। गुरुवार तक ऐसे संक्रमित लोगों की संख्या पौने तीन सौ के आसपास बताई जा रही है। सरकारी सिस्टम इस पर भले ही मौन हैं। लेकिन ये हालात इस बात की तस्दीक करते दिख रहे हैं कि उत्तराखंड में कोरोना संकट खतरे की ओर जा रहा है।
उत्तराखंड में कोरोना महामारी पर सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज फॉउंडेशन की ओर से लगातार रिसर्च की जा रही है। इस संस्था के संयोजक अनूप नौटियाल ने 15 मार्च से नौ जून के हालात पर रिसर्च की है। इस रिसर्च के अनुसार 21 मई तक संक्रमित पाए गए लोगों में से अधिकांश या तो विदेश यात्रा से लौटे थे या तब्लीगी जमात से आए थे। इसके अलावा विभिन्न राज्यों से अपने घर लौट रहे प्रवासी उत्तराखंडी थे। नौटियाल के अनुसार इस तरह से यह कहा जा सकता है कि इन लोगों के संक्रमित होने की कोई न कोई वजह थी।
21 मई के बाद से स्वास्थ्य विभाग की ओर से रोजाना जारी होने वाले बुलेटिन का भी संस्था ने गहन अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि नए सामने आ रहे संक्रमितों में से तमाम ऐसे हैं, जिनके बारे में यह ठोस तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इसकी वजह क्या है। नौटियाल बताते हैं कि अगर नौ मई तक की बात की जाए तो ऐसे लोगों की सर्वाधिक संख्या 176 देहरादून में हैं। हरिद्वार में 15, चंपावत में 14, यूएस नगर में नौ, नैनीताल में आठ, बागेश्वर में आठ, पिथौरागढ़ में सात. अल्मोड़ा में छह, पौड़ी में चार टिहरी में और उत्तरकाशी में तीन-तीन है। चमोली औऱ रुद्रप्रयाग जिले इस तरह के संक्रमितों से अभी अछूते हैं। इन सभी में में से 57 फीसदी का कोई भी यात्रा इतिहास नहीं है। 17 लोग पुलिस व मेडिकल स्टाफ से हैं। अप्रत्याशित तौर पर देहरादून सब्जी मंडी से 17 फीसदी संक्रमित इसी कैटेगरी में हैं। महज 20 फीसदी मरीजों के तीमारदार व अन्य यानि कांटेक्ट वाले हैं।
जाहिर है कि उत्तराखंड में कोरोना संकट औऱ ज्यादा गहराने के आसार बन रहे हैं। ऐसे में इस महामारी के प्रति जागरूकता और स्वयं लोगों को सुरक्षात्मक पहलुओं पर ध्यान देने की है। कहीं ऐसा न हो कि उत्तराखंड भी दिल्ली की राह पर चल पड़े।