उत्तराखंड

एक्सप्रेस-वे शुरू होते ही मोबाइल कनेक्टिविटी से जुड़ेगा मोहंड क्षेत्र

राजधानी देहरादून से बेहद करीब होने के बावजूद डाट काली क्षेत्र से आगे निकलते ही वन क्षेत्र में गणेशपुर (यूपी) तक मोबाइल के सिग्नल गायब हो जाते हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए पूर्व में दोनों राज्यों उत्तराखंड और यूपी के साथ केंद्र के स्तर पर प्रयास किए गए, लेकिन वन कानून के पेच के चलते सफलता नहीं मिल पाई।

अब आर्थिक गलियारे के रूप में करीब 12,300 करोड़ रुपये की लागत से निर्माणाधीन एक्सप्रेस-वे के निर्माण में इस बात का भी ध्यान रखा गया गया है। इसके लिए केंद्र के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ ही अन्य स्वीकृतियां ली जा चुकी हैं।

यह मोबाइल टावर सीधी सड़क पर दो-दो किमी के गैप में, जबकि घुमावदार वाले स्थानों पर 300 से 400 मीटर की दूरी पर लगाए जाएंगे। इसके लिए इन दिनों अस्टिमेंट तैयार किया जा रहा है, इसके बाद टेंडर की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। एनएचआई के के अधिकारियों की मानें तो एक्सप्रेस-वे का निर्माण पूरा होने से पहले प्रक्रिया पूरी करते हुए क्षेत्र को मोबाइल कनेक्टिविटी से जोड़ दिया जाएगा।

दून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे के 12 किमी हिस्से में बन रहे एशिया के सबसे बड़े वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर की खास बात यह है कि यहां सिंगल पिल्लर पर छह लेन हाईवे का निर्माण किया जा रहा है। ऐसे यहां करीब 571 पिल्लर का निर्माण किया जा रहा है, इनमें से 450 पिल्लर का काम पूरा हो चुका है, शेष 121 पिल्लर की बुनियाद का काम शुरू कर दिया गया है।
एक पिल्लर की दूसरे पिल्लर से दूरी करीब 21 मीटर रखी गई है। इन पिल्लर के ऊपर जो हाईवे बन रहा है, उसकी चौड़ाई करीब 25 मीटर है। सिंगल पिल्लर पर हाईवे निर्माण की यह तकनीक इसलिए अपनाई गई ताकि, वन क्षेत्र में कम से कम कंक्रीट का इस्तेमाल हो और परियोजना को जल्दी पूरा किया जा सके।

दून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे पर जब आप गाड़ी 100 से भी ज्यादा की स्पीड में दौड़ाएंगे तो इसके लिए आपको टोल के रूप में अच्छे खासे पैसे भी चुकाने होंगे। यह पैसे कितने होंगे, यह तो बाद में तय किया जाएगा, लेकिन देहरादून से दिल्ली जाते हुए पहला टोल प्लाजा सुंदरपुर गांव (गणेशपुर, यूपी) के पास बनेगा।

 

दून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे पर हर टोल प्लाजा पर किसी भी आपात स्थिति के लिए एक एंबुलेंस तैनात रहेगी। इसके अलावा हर 60 किमी की दूरी पर भी एक-एक एंबुलेंस तैनात किए जाने का प्रावधान एनएचएआई की ओर से परियोजना में किया गया है।

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