तस्वीर का सच
“होम क्वारंटीन है बड़ी चूक”
कहीं पहाड़ के भाईचारे पर असर न डाल दे ये फैसला
पलायन एक चिंतन के संयोजक ने जताई आशंका
बाहर से आए लोगों के रखें सामुदायिक क्वारंटीन में
हालात बयां करता रतन सिंह असवाल का आलेख
वैश्विक महामारी COVID-19 की बात करें तो उत्तराखंड में लॉक़डाउन के प्रथम और द्वितीय अपने अंजाम तक पहुंचा है। इस दौरान देखा गया कि एक तरफ राज्य के पर्वतीय जनपदों के नागरिकों ने लॉकडाउन के दिशा निर्देशों का पूरी ईमानदारी पालन किया वही शहरी आबादी ने अपना शहरी आचरण दिखाने में कोई कोताही नहीं बरती। अब बाहर से लाए जा रहे लोगों को क्वारंटीन के मुद्दे पर सरकार एक बड़ी चूक कर रही है।
यह एक तथ्य है कि राज्य के अधिकतर परिवारों से कोई न कोई शदस्य रोजी रोटी या पढ़ाई लिखाई के लिए घर से बाहर किसी अन्य राज्य के शहरों में जाते ही हैं। ऐसे ही सैकड़ों लोगों घर वापसी के त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के प्रयासों की खुले मन से तारीफ की जानी चाहिए। लेकिन डेढ़ माह के लॉकडाउन को इतने बढ़िया ढंग से हैंडिल करने के बाद सरकार होम क्वारंटीन के फैसले पर बड़ी चूक कर गई। सवाल यह भी है कि सरकार ने होम क्वारंटीन जैसा इतना बड़ा जोखिम किन लोगों के कहने पर और किस मजबूरी में लिया होगा। अब होम क्वारंटीन जैसे निर्णय से पहाड़ की ग्रामीण जनता के मन मे तरह-तरह की आशंकाएं उत्पन्न हो रही है।
राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य व्यवस्था के हाल किसी से छुपे नही हैं। इससे इतर 1918 के स्पेनिश फ्लू और अकाल के बाद के हालात, केदारनाथ आपदा और भूकंपों में हुई मानवीय क्षति के आंकड़े तो राज्य की नौकरशाही के पास होंगे ही। भगवान न करे वैसे हालातों से नई पीढ़ी को दो चार होना पड़े । इसके लिए सरकार को कड़े और सर्वजन प्रभावी कदम उठाने होंगे और बाहरी राज्यो से राज्य में प्रवेश करने वालों की पूरी मेडिकल जांच के और सरकार की निगरानी में ही केंद्र सरकार व राज्य सरकार के दिशा निर्देशों के अनुरूप ही सामुदायिक क्वारंटीन किया जाना मानव जाति के हित मे होगा ।
मैं व्यक्तिगत रूप से सरकार की निगरानी में सामुदायिक क्वारंटीन को सही मानता हूं। होम क्वारंटीन ग्रामीणों के आपसी भाईचारे को भी प्रभावित कर सकता है। समय रहते सहानुभूति पूर्वक होम क्वारंटीन जैसे संवेदशील निर्णय पर सरकार को एक बार पुनः विचार जरूर करना चाहिए। मानव के अस्तित्व के लिए हर इंसान का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। यदि सामुदायिक दूरियों से वैश्विक महामारी कोरोना पर विजय हासिल की जा सकती है तो सामुदायित क्वारंटीन से परहेज क्यों ?