खुलासा

अब एक हजार करोड़ का घोटाला ये भी

अफसर बता रहे विभाग के सिस्टम में ही खामी, एफआईआर

देहरादून। कथित व्यापारियों ने सरकार को एक हजार करोड़ रुपये का चूना लगा किया। मामला पकड़ में आया तो आरोपी फर्मों के खिलाफ एफआईआर करा दी गई है। अहम बात यह भी है कि विभागीय अफसर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़कर सिस्टम की खामी को दोषी बना रहे हैं।

राज्य के ऊधमसिंह नगर जिले में यह जीएसटी घोटाले का यह बड़ा मामला सामने आया है। राज्य कर विभाग की ओर से रुद्रपुर और काशीपुर कोतवाली में दो अलग-अलग एफआईआर कराईं गईं है। रुद्रपुर कोतवाली में दर्ज एफआईआर के अनुसार 40 फर्मों ने 473 करोड़ की कर चोरी की है। इसी तरह काशीपुर कोतवाली की रिपोर्ट के अनुसार 34 फर्मों ने सरकार को 529 करोड़ रुपये की चपत लगाई है। इस तरह से यह घोटाला एक हजार करोड़ से ज्यादा रुपये का है। अधिकांश फर्में काशीपुर और रुद्रपुर की ही है। चंद फर्म राजधानी देहरादून की भी बताई जा रही है।

बताया जा रहा है कि इन फर्मों ने ऑनलाइन पंजीकरण कराया है। इसके बाद ई-वे बिल के आधार पर अन्य राज्यों ने माल मंगाना शुरू कर दिया। लेकिन जीएसटी राशि जमा नहीं की। विभागीय अफसर भी आंख मूंदे बैठे रहे। ये फर्जी फर्में सरकार को राजस्व का चूना लगाती रही। इसकी भनक राज्य मुख्यालय को लगी तो फील्ड के अफसरों को तहकीकात करने को कहा गया। अब तक की जांच में सामने आया है कि ऑनलाइन पंजीकरण में अधिकांश फर्म में फोटो एक ही शख्स की इस्तेमाल किया गया है। अलबत्ता कागजात अलग-अलग लगाए गए हैं। इन फर्मों ने प्लास्टिक दाना और चप्पल के लिए कच्चा माल मंगाने के लिए ई-वे बिल जनरेट किए हैं। कुछ फर्मों ने मशीनें मंगाने के लिए भी ई-वे बिल जनरेट किए हैं।

इस मामले में अफसरों के अपने ही तर्क है। एफआईआर कराने वाले उपायुक्त (एसटीएफ) आरएल वर्मा का कहना है कि पहली बात तो यह है कि इन फर्मों ने अपना पंजीकरण सीजीएसजी (केंद्रीय कर विभाग) में कराया है। इसकी पूरी मॉनीटरिंग केंद्रीय विभाग ही करता है। एक सवाल पर वर्मा का कहना था कि मॉनीटरिंग का काम एसजीएसटी (राज्य कर विभाग) का भी है। अगर ऐसा न होता तो यह मामला पकड़ में ही नहीं आता। वर्मा कहते हैं कि दरअसल, ऑनलाइन पंजीकरण सिस्टम में कुछ खामियां हैं। लोग कट-पेस्ट करके आन लाइन पंजीकरण करा लते हैं। इसी का फायदा व्यापारी उठाते रहते हैं। बेहतर होगा कि पंजीरकरण पहले की तरह ऑफलाइन ही कराया जाए। यह पूरी चोरी एक ही महीने से भी कम समय में कर ली गई। अब इस मामले की सच्चाई क्या है, यह तो साइबर जांच के बाद ही सामने आ पाएगा।

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