शिक्षा सचिव के नए आदेश से स्कूलों को मिला अभिभावकों पर दबाव बनाने का मौका
लॉकडाउन में रोजगार नहीं होने पर अधिकतर अभिभावक झेल रहे हैं आर्थिक संकट
न्यूज वैट ब्यूरो
देहरादून। सरकार, प्राइवेट स्कूलों पर यह मेहरबानी क्यों? आखिर ऐसा क्या हो गया था कि स्कूलों की फीस को लेकर शिक्षा सचिव ने अपने ही आदेश को पलट दिया। सवाल यह भी है कि शासन के पास ऐसा कौन सा फार्मूला है जिससे पता चल गया कि फीस नहीं मिलेगी तो प्राइवेट स्कूल वालों के पास शिक्षकों और कर्मचारियों को देने के लिए पैसा नहीं होगा। इसको सरकार पर निजी स्कूलों के दबाव के रूप में देखा जा रहा है।
शासन ने पहले तो स्कूलों के फीस लेने पर रोक का आदेश जारी किया था और फिर उसके कुछ दिन बाद 22 अप्रैल को यह फरमान सुना दिया कि स्कूल एक माह की फीस ले सकते हैं। तर्क यह दिया गया कि कुछ स्कूलों का कहना है कि फीस न मिलने से शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन देने में आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। स्कूलों ने आर्थिक कठिनाई की बात कही और शासन ने इसको सच मानकर आदेश भी जारी कर दिया। लेकिन शासन को उन अधिकतर अभिभावकों की पीड़ा दिखाई नहीं दी, जो लॉकडाउन में रोजगार नहीं होने पर आर्थिक दिक्कतों को झेल रहे हैं।
शासन के बैकफुट पर जाने से प्राइवेट स्कूलों के हौसले इतने बढ़ गए कि कुछ ने तो अगले दिन ही अभिभावकों को फीस जमा करने के मैसेज भेजने शुरू कर दिए। शासन के आदेश से जहां अभिभावकों पर फीस जमा करने के दबाव बना है, वहीं स्कूलों को अपने शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन में कटौती करने या वेतन भुगतान न करने का मौका भी मिल गया, क्योंकि शिक्षा सचिव ने अपने आदेश में स्कूलों की उस बात को सही करार दिया है, जिसमें फीस प्राप्त नहीं होने पर वेतन देने में आर्थिक कठिनाइयों का जिक्र किया गया है। शिक्षा सचिव के इस नए फरमान की सोशल मीडिया में जमकर किरकिरी हो रही है। सोशल मीडिया पर यह सवाल पूछा जा रहा है कि कोरोना संक्रमण के समय में आखिर स्कूलों की फीस जमा कराने संबधी इस नये आदेश की क्या जरूरत थी, जबकि सरकार पहले इस पर रोक लगा चुकी थी। कहा तो यह भी जा रहा है कि जब फीस नहीं मिलने पर स्कूल प्रबंधन आर्थिक संकट में है तो फिर वो मुख्यमंत्री राहत कोष में सहयोग क्यों कर रहे हैं। क्या यह सब सरकार की नजरों में खुद को बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा तो नहीं है।