ढाई दशक पुरानी है संविधान की धारा 348 में संशोधन की मांग

हिंदी से न्यायः क्या नजदीक है ‘फैसले’ की घड़ी
पीएम मोदी ने दिए संकेत, संसद के पटल पर मामला
शीर्षतम न्यायमूर्ति जस्टिस रमना का भी मिला समर्थन
आगरा। सुप्रीमकोर्ट और सभी हाईकोर्टस में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में कामकाज शुरू कराने की मुहिम ‘हिंदी से न्याय’ को चंद्रशेखर पंडित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय ने लगभग ढाई-दशक पहले शुरू की थी। विगत दिवस दिल्ली में देश के वरिष्ठतम जजों और मुख्यमंत्रियों की कांफ्रेंस में पीएम मोदी ने मातृभाषा में अदालती-कामकाज निपटाने की जरूरत पर बल दिया था। इसकी जरूरत सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति ने भी बताई है। उपाध्याय कहते हैं कि ऐसा लगता है कि उनकी इस मुहिम पर फैसले की घड़ी ही गई है।

आगरा में जन्मे उपाध्याय ने सबसे पहले एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। फिर वहीं से हिंदी से न्याय का एक देशव्यापी अभियान शुरू किया। अभियान देश की सरहदों को पार करता हुआ अंग्रेजों के देश ब्रिटेन के अलावा कई यूरोपीय देशों तक पहुँच गया। वहां रह रहे भारतीयों ने अभियान के समर्थन में हस्ताक्षर-अभियान चलाया। उन्होंने देश-भर से लगातार एक करोड़ नौ लाख के आसपास हस्ताक्षर जुटाए हैं। 27 प्रान्तों में उनकी टीमें काम कर रही हैं। देश के तमाम नामचीन लोगों को उन्होंने अपने अभियान से जोड़ा है। अब प्रधानमंत्री ने देश के सबसे बड़े मंच से उनकी मुहिम का समर्थन किया है,यह उनके अभियान का शीर्ष-पड़ाव है।
उपाध्याय कहते हैं कि दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 348 में देश की शीर्ष अदालतों में केवल अंग्रेजी में ही कामकाज निपटाने की बाध्यता है। यह व्यवस्था अंग्रेजों के समय से है। अनुच्छेद 370 की तरह यह भी एक अस्थायी संवैधानिक व्यवस्था है। अनुच्छेद 349 में इसे भारत का संविधान लागू होने के 15 वर्ष के भीतर इसे समाप्त करने की बात कही गई है। उपाध्याय ने बताया कि 16 वीं लोकसभा में भाजपा के अर्जुन राम मेघवाल ने मामला सदन में उठाया था। वर्तमान 17वीं लोकसभा में भाजपा के ही सत्यदेव पचौरी ने अनुच्छेद 348 में संशोधन की मांग की थी।